सनातन धर्म जो अपने आप में ही एक रहस्य है जिसको पूरी तरह समझना कोई आसान काम नहीं है और न कोई व्यक्ति विषेस इसकी पूरी तरह से परिभाषा बता सकता है। सनातन धर्म में (धर्म) को ना ही मंदिर माना गया है, ना गीता माना गया है, ना पूजा-पाठ। 

फिर धर्म क्या है? - धर्म सत्य है, धर्म प्रेम है, धर्म कर्तव्य है अगर मनुष्य धर्म का पालन नहीं करेगा तो पूरी दुनिया का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा।

धर्म की तुलना हमेशा कर्तव्य यानी मनुष्य के कर्म से की जाती है। अगर हम मनुष्य है तो हमारे क्या कर्म है जिसका हमे पालन करना चाहिए। हमारे माता-पिता के साथ हमारे कर्म, लोगो-दुनिया के साथ हमारे कर्म, जीवो पेड़ो पक्षियों के साथ हमारे कर्म हमारे देश हमारी संतान के साथ हमारे कर्म। यही सारी चीज़े हमे यज्ञ द्वारा सिखाई जाती है।

अब आप सोच रहे होंगे की यज्ञ का कर्म से क्या लेना देना है?

यज्ञ, इंसानो द्वारा किया गया कर्म है जो लोक कल्याण के लिए किया जाता है।  इसलिए भागवत गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है की प्रतेक मनुष्य को कर्म यज्ञ की तरह करने चाहिए। या तो वह उस कर्म/यज्ञ को लोक कल्याण के लिए करे या मेरे लिए सब मोह माया से मुक्त होकर। 


यज्ञ कितने प्रकार के होते है?

यज्ञ चार प्रकार के होते है -

What is Yagya, what is the importance of Yagya?

द्रव्य यज्ञ 

यहाँ यज्ञ मनुष्य द्वारा समाज कल्याण के लिए किया जाता है। इसमें मनुष्य अपने कर्म अथवा धन को समाज कल्याण में लगाता है। इसको लोकसेवा यज्ञ भी कहा जा सकता है। 

तपो यज्ञ 

इस यज्ञ में मनुष्य अपने कर्म को अपनी तपस्या अपना धर्म बना लेता है, नियमित रूप से अपना कर्म करता है बिना किसी स्वार्थ/फल के उसको तपो यज्ञ कहते है।  

योग यज्ञ 

इस यज्ञ में मनुष्य ध्यान और समाधि करते है जिससे उनके मन के बुरे विकार दूर हो सके और उन्हें परम् ब्रह्म का ज्ञान मिले जिससे उनकी आत्मा परमाता में वलीन हो जाए और उनको मोक्ष की प्राप्ति मिले। 

ज्ञान यज्ञ 

ज्ञान यज्ञ बाकी यज्ञ में सबसे श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि ज्ञान ही एक ऐसी शक्ति है जो अच्छे-बुरे में फ़र्क़ बताती है और मनुष्य के कर्म को सही दिशा में ले जाती है। 


यज्ञ करने के फायदे क्या है?

जैसा की हमने बताया यज्ञ कोई हवन नहीं है। हर इंसान के लिए यज्ञ की परिभाषा अलग-अलग है। कुछ लोग यज्ञ करके अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए करते है जो परम् ब्रह्म को ही सत्य मानते है, कुछ लोग देवताओ को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करते है। 

तरह-तरह की सोच रखते हुए लोग यज्ञ में आहुति भी उसी प्रकार देते है कोई कर्म की आहुति देता है तो कोई धन की, जैसी सोच रखके मनुष्य यज्ञ में आहुति देता है वैसा ही उस यज्ञ से उसको फल प्राप्त होता है। अगर आप यज्ञ अपने परिवार की कुशलता के लिए सुख समृद्धि के लिए मानवता की भलाई के लिए मोक्ष की प्राप्ति के लिए करते है तो आपको आहुति भी उसी प्रकार की देनी होती है। अपने कर्म, मन, विचार-विकार को भी उसी प्रकार आपको ढालना होता है, वरना यज्ञ का फल आपके लिए ही विनाष कारी हो सकता है। 

 

यज्ञ और हवन में क्या अंतर् है?

हवन यज्ञ का ही एक रूप है जो देवताओ को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है ताकि मनुष्य को देवताओ के आशीर्वाद से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो सके। इसको करने से मनुष्य के मन अथवा विचार शुद्ध होते है। 

वही यज्ञ सकारात्मक कर्म को कहा जाता है अथवा ज्ञान के विस्तार को भी यज्ञ कहा जाता है। यज्ञ किसी ख़ास लक्ष्य के लिए तथा मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। 


क्या पूजा भी यज्ञ का हिस्सा है?

पूजा अपने प्रभु को प्राप्त करने अथवा उनसे जुड़ने का एक आधार है। यहा भी एक कर्म ही है और अगर आप इसको पूरे सच्चे मन से कर रहे है तो यहाँ भी एक यज्ञ ही होगा। पूजा से मनुष्य अपनी ऊर्जा को एकत्रित करके उसको ब्रह्म ऊर्जा से जोड़ता है। ऐसा करने से मनुष्य की ध्यान शक्ति बढ़ती है, जो हमको ज्ञान की की तरफ ले जाती है। 

पूजा आपको  मन, क्रोध, स्वार्थ, काम जैसी कामनाओ से ऊपर उठाकर जीवन की सच्चाई की और ले जाती है। यहाँ आपके मन के बुरे विचार/विकार को खत्म कर आपके जीवन के कर्म आपके लक्ष्य की और ले जाती है।