श्री हरी नारायण के अवतार "श्री राम" जिन्हे मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। जो व्यक्ति विधि-विधान से भगवान राम की पूजा, जप और व्रत करता है, उसे जीवन से जुड़े सभी सुख प्राप्त होते हैं। इस लेख में हम आपको भगवान श्री राम की चार आरती के बारे में बताएंगे। इनमे से कोई भी आरती का प्रयोग आप भगवान राम की पूजा या अभिवादन करते समय गा कर करे। 


Shree Ram Aarti


आरती कीजै रामचन्द्र जी की।


आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥

पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥

दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥

तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥

चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥

पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥

|| इति श्री राम आरती समाप्त || 


आरती जगमग जगमग जोत जली है। 


जगमग जगमग जोत जली है ।
राम आरती होन लगी है ।।

भक्ति का दीपक प्रेम की बाती ।
आरति संत करें दिन राती ।।

आनन्द की सरिता उभरी है ।
जगमग जगमग जोत जली है ।।

कनक सिंघासन सिया समेता ।
बैठहिं राम होइ चित चेता ।।

वाम भाग में जनक लली है ।
जगमग जगमग जोत जली है ।।

आरति हनुमत के मन भावै ।
राम कथा नित शंकर गावै ।।

सन्तों की ये भीड़ लगी है ।
जगमग जगमग जोत जली है ।।

|| इति श्री रामचंद्र जी आरती समाप्त || 



आरती श्री रघुवर जी की


आरती कीजै श्री रघुवर जी की,सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की।
दशरथ तनय कौशल्या नन्दन,सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन।
अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन,मर्यादा पुरुषोतम वर की।

आरती कीजै श्री रघुवर जी की,सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की 


निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि,सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि।
हरण शोक-भय दायक नव निधि,माया रहित दिव्य नर वर की।

आरती कीजै श्री रघुवर जी की,सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की


जानकी पति सुर अधिपति जगपति,अखिल लोक पालक त्रिलोक गति।
विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति,एक मात्र गति सचराचर की।

आरती कीजै श्री रघुवर जी की,सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की


शरणागत वत्सल व्रतधारी,भक्त कल्प तरुवर असुरारी।
नाम लेत जग पावनकारी,वानर सखा दीन दुख हर की।

आरती कीजै श्री रघुवर जी की,सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की


|| इति श्री रघुवर जी आरती समाप्त || 



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आरती श्री जानकीनाथ की


जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा
दोउ कर जोरें बिनवौं प्रभु ! सुनिये बाता ।

तुम रघुनाथ हमारे प्रान, पिता माता
तुम ही सज्जन – संगी भक्ति – मुक्ति–दाता ।।

जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा
लख चौरासी काटो मेटो यम-त्रासा
निसदिन प्रभु मोहि रखिये अपने ही पासा ।।

जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा
राम भरत लछिमन सँग शत्रुहन भैया
जगमग ज्योति विराजै, सोभा अति लहिया ।।

जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा
हनुमत नाद बजावत, नेवर झमकाता
स्वर्णथाल कर आरती कौसल्या माता ।।

जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा
सुभग मुकुट सिर, धनु सर कर सोभा भारी
मनीराम दर्शन करि पल – पल बलिहारी ।।

जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा
|| इति श्री जानकीनाथ जी आरती समाप्त ||