माँ नैना देवी चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। माता की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। मां नैना देवी के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है। उसपर अथवा उसके परिवार पर कोई भी नकारात्मकता का वास नहीं रहता। उसका जीवन खुशियों से भर जाता है। 


नैना देवी चालीसा || Naina Devi Chalisa


॥ दोहा ॥

नैनों में बसती छवि दुर्गे नैना मात।
प्रातः काल सिमरन करू हे जग की विख्यात॥

सुख वैभव सब आपके चरणों का प्रताप।
ममता अपनी दीजिए माई, मैं बालक करूं जाप॥


॥ चौपाई ॥

नमस्कार हैं नैना माता, 
दीन दुखी की भाग्य विधाता।

पार्वती ने अंश दिया हैं, 
नैना देवी नाम किया हैं।

दबी रही थी पिंडी होकर, 
चरती गायें वहा खड़ी होकर।

एक दिन अनसुईया गौ आई, 
पिया दूध और थी मुस्काई।

नैना ने देखी शुभ लीला, 
डर के भागा ऊँचा टीला।

शांत किया सपने में जाकर, 
मुझे पूज नैना तू आकर।

फूल पत्र दूध से भज ले, 
प्रेम भावना से मुझे जप ले।

तेरा कुल रोशन कर दूंगी, 
भंडारे तेरे भर दूंगी।

नैना ने आज्ञा को माना, 
शिव शक्ति का नाम बखाना।

ब्राह्मण संग पूजा करवाई, 
दिया फलित वर माँ मुस्काई।

ब्रह्मा विष्णु शंकर आये, 
भवन आपके पुष्प चढ़ाए।

पूजन आये सब नर नारी, 
घाटी बनी शिवालिक प्यारी।

ज्वाला माँ से प्रेम तिहारा, 
जोतों से मिलता हैं सहारा।

पत्तो पर जोतें हैं आती, 
तुम्हरें भवन हैं छा जाती।

जिनसे मिटता हैं अंधियारा, 
जगमग जगमग मंदिर सारा।

चिंतपुर्णी तुमरी बहना, 
सदा मानती हैं जो कहना।

माई वैष्णो तुमको जपतीं, 
सदा आपके मन में बसती।

शुभ पर्वत को धन्य किया है, 
गुरु गोविंद सिंह भजन किया है।

शक्ति की तलवार थमाई, 
जिसने हाहाकार मचाई।

मुगलो को जिसने ललकारा, 
गुरु के मन में रूप तिहारा।

अन्याय से आप लड़ाया, 
सबको शक्ति की दी छाया।

सवा लाख का हवन कराया, 
हलवे चने का भोग लगाया।

गुरु गोविंद सिंह करी आरती, 
आकाश गंगा पुण्य वारती।

नांगल धारा दान तुम्हारा, 
शक्ति का स्वरुप हैं न्यारा।

सिंह द्वार की शोभा बढ़ाये, 
जो पापी को दूर भगाए।

चौसंठ योगिनी नाचें द्वारे, 
बावन भेरो हैं मतवारे।

रिद्धि सिद्धि चँवर डुलावे, 
लांगुर वीर आज्ञा पावै।

पिंडी रूप प्रसाद चढ़ावे, 
नैनों से शुभ दर्शन पावें।

जैकारा जब ऊँचा लागे, 
भाव भक्ति का मन में जागे।

ढोल ढप्प बाजे शहनाई, 
डमरू छैने गाये बधाई।

सावन में सखियन संग झूलों, 
अष्टमी को खुशियों में फूलो।

कन्या रूप में दर्शन देती, 
दान पुण्य अपनों से लेती।

तन-मन-धन तुमको न्यौछावर, 
मांगू कुछ झोली फेलाकर।

मुझको मात विपद ने घेरा, 
मोहमाया ने डाला फेरा।

काम क्रोध की ओढ़ी चादर, 
बैठा हूँ नैया को डूबोकर।

अपनों ने मुख मोड़ लिया हैं, 
सदा अकेला छोड़ दिया हैं।

जीवन की छूटी है नैया, 
तुम बिन मेरा कौन खिवैया।

चरणामृत चरणों का पाऊँ, 
नैनों में तुमरे बस जाऊं।

तुमसे ही उद्धारा होगा, 
जीवन में उजियारा होगा।

कलयुग की फैली है माया, 
नाम तिहारा मन में ध्याया।

|| इति नैना देवी चालीसा सम्पूर्ण ||

Naina Devi Chalisa


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