प्रदोष स्तोत्र भगवान शिव को समर्पित है इसका नियमित पाठ करने से किसी भी प्रकार की दरिद्रता, पाप, शोक, कर्ज अथवा नव ग्रह की पीड़ा और महारोग को भी यहाँ दिव्य स्तोत्र नष्ट कर देता है। भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग के सामने घी का दीपक जला कर इस स्तोत्र का पाठ करे। 

आप चाहे तो इसका घर पर ही नित्य पाठ कर सकते है या फिर प्रदोष व्रत के दिन इसकी पूजा कर सकते है। यह स्तोत्र इतना प्रभावशाली है की इसका नियमित पाठ करने से दीर्घायु के साथ भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है जिससे मनोवांछित फल प्राप्त होता है। 


Shiv Pradosh Stotram


शिव प्रदोष स्तोत्रम् || Shiv Pradosh Stotram


जय देव जगन्नाथ जय शंकर शाश्वत ।

जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥1॥

अर्थ - हे समस्त जगत के स्वामी (जग्गनाथ) आपकी जय हो। हे सनातन (शंकर) सदा कल्याण करने वाले ! आपकी जय हो। हे (सर्वसुराध्यक्ष) समस्त देवताओं के अध्यक्ष ! आपकी जय हो तथा हे (सर्वसुरार्चित) समस्त देवताओं द्वारा पूजित ! आपकी जय हो।


जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद ।

जय नित्यनिराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥2॥

अर्थ - हे (सर्वगुणातीत) सभी गुणों से अतीत ! आपकी जय हो । हे (सर्ववरप्रद) सबको वर प्रदान करने वाले ! आपकी जय हो। नित्य, आधाररहित, अविनाशी विश्वम्भर ! आपकी जय हो।


जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण ।

जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥3॥

अर्थ - हे (विश्वैकवन्द्येश) समस्त विश्व के एकमात्र वन्दनीय परमात्मन् ! आपकी जय हो। हे (नागेन्द्रभूषण) नाग को आभूषण के रूप में धारण करने वाले ! आपकी जय हो। हे गौरीपते ! आपकी जय हो। हे (चन्द्रार्धशेखर) अपने मस्तक पर अर्धचन्द्र को धारण करने वाले शम्भो ! आपकी जय हो।


जय कोट्यर्कसंकाश जयानन्तगुणाश्रय ।

जय भद्र विरुपाक्ष जयाचिन्त्य निरंजन ॥4॥

अर्थ - हे कोटि सूर्यों के समान तेजस्वी शिव ! आपकी जय हो। अनन्त गुणों के आश्रय परमात्मन् ! आपकी जय हो। हे (विरुपाक्ष) त्रिनेत्र वाले कल्याणकारी शिव ! आपकी जय हो। हे अचिन्त्य ! हे निरंजन! आपकी जय हो।


जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभंजन।

जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥5॥

अर्थ - हे नाथ ! आपकी जय हो ! भक्तों की पीड़ा का नाश करने वाले कृपासिन्धो ! आपकी जय हो। हे दुस्तर संसार-सागर से पार उतारने वाले परमेश्वर ! आपकी जय हो।


प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यत: ।

सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥6॥

अर्थ - हे महादेव ! मैं संसार के दु:खों से पीड़ित एवं खिन्न हूँ, मुझ पर प्रसन्न होइए। हे परमेश्वर ! मेरे सारे पापों का नाश करके मेरी रक्षा कीजिए।


महादारिद्रयमग्नस्य महापापहतस्य च ।

महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥7॥

अर्थ - हे शंकर ! मैं घोर दारिद्रय के समुद्र में डूबा हुआ हूँ। बड़े-बड़े पापों से आहत हूँ, अनन्त चिन्ताएं मुझे घेरी हुई हैं, भयंकर रोगों से मैं दु:खी हूँ।


ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कमीभ: ।

ग्रहै: प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शंकर ॥8॥

अर्थ - सब ओर से ऋण के भार से लदा हुआ हूँ। पापकर्मों की आग में जल रहा हूँ और ग्रहों से अत्यन्त पीड़ित हो रहा हूँ। शंकर मुझ पर प्रसन्न होइये।


दरिद्र: प्रार्थयेद् देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् ।

अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद् देवमीश्वरम् ॥9॥

दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नति: ।

ममस्तु नित्यमानन्द: प्रसादात्तव शंकर ॥10॥

अर्थ - यदि दरिद्र व्यक्ति प्रदोष काल में भगवान गिरिजापति की प्रार्थना करता है तो वह धनी हो जाता है और यदि राजा प्रदोष काल में भगवान शंकर की प्रार्थना करता है तो उसको दीर्घायु की प्राप्ति होती है, वह सदा नीरोगी रहता है। उसके कोश की वृद्धि व सेना की अभिवृद्धि होती है। हे शंकर ! आपकी कृपा से मुझे भी नित्य आनन्द की प्राप्ति हो।


शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजा: ।

नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जना: सन्तु निरापद: ॥11॥

अर्थ - मेरे शत्रु क्षीणता को प्राप्त हों तथा मेरी प्रजाएं सदा प्रसन्न रहें। चोर-डाकू नष्ट हो जाएं। राज्य में सारे लोग आपत्तिरहित हो जाएं।


दुर्भिक्षमारिसंतापा: शमं यान्तु महीतले ।

सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात् सुखमया दिश: ॥12॥

अर्थ - पृथ्वी पर दुर्भिक्ष, महामारी आदि का संताप (प्रकोप ) शान्त हो जाए। सभी प्रकार की फसलों की वृद्धि हो। दिशाएं सुखमयी बन जाएं।


एवमाराधयेद् देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् ।

ब्राह्मणान् भोजयेत् पश्चाद् दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥13॥

अर्थ - इस प्रकार गिरिजापति की आराधना करनी चाहिए। आराधना के अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इसके बाद अपनी सामर्थयानुसार दक्षिणा आदि देकर उनका पूजन करना चाहिए।


सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारिणी ।

शिवपूजा मयाख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥14॥

अर्थ - भगवान शिव की पूजा सब पापों का नाश करने वाली, सब रोगों को दूर करने वाली और समस्त अभीष्ट फलों को देने वाली है।