"नंदी" के बारे में कौन नहीं जनता होगा अगर आप भी भगवान शिव के भक्त है तो आप जानते होंगे की नंदी भगवान शिव की सवारी है। 

पर क्या आप यह बात जानते है की नंदी और कोई नहीं बल्कि भगवान शिव का ही एक रूप है। ऐसी बहुत सारी बाते है जो हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएंगे। निवेदन इस लेख को अंत तक पढियेगा।


कैसे हुई नंदी की उत्पत्ति 

महादेव को नंदी कैसे प्राप्त हुए थे इसके बारे में शिव पुराण में विस्तार से बताया गया है। नंदी जी को नंदकेश्वर या नन्दीश्वर नाम से भी जाना जाता है। नंदी का अर्थ संस्कृत में प्रसन्नता अथवा आनंद होता है। 

एक बार शिलाद नामक ऋषि जल पुत्र की कामना से इंद्र की तपस्या कर रहे थे। इंद्र ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और बताया जिस इच्छा के लिए तुम यह सब कर रहे हो वो वरदान देना मेरे बस की बात नहीं है इसके लिए तुम्हे महादेव की तपस्या करनी चाहिए। 

ये बात सुनते ही ऋषि शिलाद महादेव की तपस्या में लीन हो गए। यह देख भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हुए और शिलाद ऋषि को दर्शन दिए और कहा मेरा एक रूप आपके पुत्र के रूप में जन्म लेगा। जिसका नाम नंदी होगा। 

उसके कुछ समय बाद भूमि जोत ते समय ऋषि शिलाद को भूमि से एक बालक की प्राप्ति हुई। जिसका तेज़ सूर्य से भी ज्यादा और रूप काफी आकर्षित था।


Bhagwan Shiv Vahan Nandi


कैसे बने नंदी भगवान शिव की सवारी 

पांच वर्ष के होने पर शिलाद ऋषि ने नंदी को वेदो का अध्यन करवाया। महज पांच वर्ष की आयु में नंदी जी को सम्पूर्ण वेदो का ज्ञान प्राप्त हो चूका था। जब नंदी सात वर्ष के हुए तो भगवान शिव की आज्ञा से 2 महा-ऋषि मित्र और वरुण नंदी को देखने के लिए शिलाद ऋषि की कुटिया में पधारे। 

अपने पिता के कहने पर नंदी ने उन दिव्य ऋषियों की खूब सेवा की अंत में जब व्हे ऋषि वह से जाने लगे तो उन्होंने ऋषि शिलाद को लम्बी उम्र और खुशाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी जी को नहीं। 

यह देख जब शिलाद ऋषि ने उनसे इसकी वजह पूछी तो दिव्य ऋषि ने उन्हें बताया की नंदी का जीवन महज एक साल और का ही शेष है तुम्हारे पुत्र का अल्प आयु में निधन हो जाएगा यह सुन शिलाद ऋषि को चिंता सताने लगी। 

अपने पिता को चिंता में देख नंदी जी ने उन्हें बताया की कोई भी देवता, दानव, यक्ष, गंध्रब, काल कोई भी नहीं मार सकता मेरी अल्प आयु में मृत्यु नहीं होगी। में महादेव की अर्धना करके अपनी मृत्यु को दूर भगा दूंगा। 

यह बोलकर नंदी जी ने अपने पिता से शिव आराधना करने की अनुमति ली और वन में भगवान शिव का तप करने चले गए। नंदी जी ने वन में जाकर भुवन नदी के किनारे भगवान शिव की घोर तपस्या करना आरम्भ किया। उनकी आस्था देख भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और नंदी को दर्शन दे कर वरदान मांगने को कहा। 

तब नंदी ने भगवान शिव से वरदान में उम्र भर उनकी सेवा करने को कहा। नंदी का उनके प्रति समर्पण देख          भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें अल्प आयु की मृत्यु से मुक्त कर दिया और अपने सबसे प्रिय भक्त, गण अथवा सवारी के रूप में स्वीकार किया साथ ही साथ उन्हें अपने गणो का आधिपति भी बनाया।  


भगवान शिव की मूर्ति के सामने नंदी को क्यों स्थापित किया जाता है? 

नंदी भगवान शिव के बहुत प्रिय भक्त है इसलिए भगवान शिव और माता पार्वती नंदी को अपने पुत्र के समान स्नेह व प्यार करते है। भगवान शिव ने नंदी को अजर-अमर का वरदान दिया है सभी गणो के आधिपति होने का अभिषेक प्रदान किया है। 

नंदी के समर्पण भाव से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को आशीर्वाद दिया है की जहा भी उनका निवास होगा वह पर नंदी का भी निवास होगा। 

नंदी एक बेल है और बेल एक शांत और समर्पण स्वभाव का जीव माना जाता है वह पवित्रता, बुद्धि, बल और शक्ति का भी प्रतीक माना जाता है। जिस तरह गांय में कामधेनु श्रेष्ट है उसी तरह बेलो में नंदी जी को श्रेष्ट माना गया है। 



नंदी के कान में क्यों बोली जाती है मनोकामना 

मान्यता है की भगवान शिव तपस्वी है और व्हे हमेशा समाधि में लीन रहते है। कोई भक्त जब भगवान शिव की अर्धना पूजा करने उनके मंदिर आता है तो उनकी तपस्या भंग न हो इसलिए भक्त नंदी जी के कान में अपनी मनोकामना रखते है ताकि नंदी जी उनकी मनोकामना को भगवान शिव तक पंहुचा सके।