तुलसी जी को विष्णुवल्लभा और वृंदा भी कहा जाता है। घर में तुलसी का पौधा रखना बहुत पवित्र माना जाता है क्योंकि तुलसी का पौधा औषधि अथवा पूजा के उपयोग में आता है। भगवान श्री हरी नारायण को तुलसी पत्र अर्पित करने से भगवान बेहद अधिक प्रसन्न होते है।
श्री तुलसी चालीसा का पाठ करने से रोग-दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है की जिस घर में प्रतिदिन तुलसी की पूजा होती है उस घर में दरिद्रता और दुर्भाग्य वास नहीं करता है। अगर आपक नित्य तुलसी पर जल चढ़ाने के बाद तुलसी चालीसा का पाठ करते है तो श्री लक्ष्मी-नारायण की कृपा आपके और आपके परिवार पर सदैव बनी रहती है।
श्री तुलसी चालीसा || Shree Tulsi Chalisa
श्री तुलसी महारानी,
करूँ विनय सिरनाय।
जो मम हो संकट विकट,
दीजै मात नशाय॥
नमो नमो तुलसी महारानी,
महिमा अमित न जाए बखानी।
दियो विष्णु तुमको सनमाना,
जग में छायो सुयश महाना।
विष्णुप्रिया जय जयति भवानि,
तिहूं लोक की हो सुखखानी।
भगवत पूजा कर जो कोई,
बिना तुम्हारे सफल न होई।
जिन घर तव नहिं होय निवासा,
उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।
करे सदा जो तव नित सुमिरन,
तेहिके काज होय सब पूरन।
कातिक मास महात्म तुम्हारा,
ताको जानत सब संसारा।
तव पूजन जो करैं कुंवारी,
पावै सुन्दर वर सुकुमारी।
कर जो पूजा नितप्रति नारी,
सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।
वृद्धा नारी करै जो पूजन,
मिले भक्ति होवै पुलकित मन।
श्रद्धा से पूजै जो कोई,
भवनिधि से तर जावै सोई।
कथा भागवत यज्ञ करावै,
तुम बिन नहीं सफलता पावै।
छायो तब प्रताप जगभारी,
ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।
तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन में,
सकल काज सिधि होवै क्षण में।
औषधि रूप आप हो माता,
सब जग में तव यश विख्याता।
देव रिषी मुनि औ तपधारी,
करत सदा तव जय जयकारी।
वेद पुरानन तव यश गाया,
महिमा अगम पार नहिं पाया।
नमो नमो जै जै सुखकारनि,
नमो नमो जै दुखनिवारनि।
नमो नमो सुखसम्पति देनी,
नमो नमो अघ काटन छेनी।
नमो नमो भक्तन दुःख हरनी,
नमो नमो दुष्टन मद छेनी।
नमो नमो भव पार उतारनि,
नमो नमो परलोक सुधारनि।
नमो नमो निज भक्त उबारनि,
नमो नमो जनकाज संवारनि।
नमो नमो जय कुमति नशावनि,
नमो नमो सब सुख उपजावनि।
जयति जयति जय तुलसीमाई,
ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।
निजजन जानि मोहि अपनाओ,
बिगड़े कारज आप बनाओ।
करूँ विनय मैं मात तुम्हारी,
पूरण आशा करहु हमारी।
शरण चरण कर जोरि मनाऊँ,
निशदिन तेरे ही गुण गाऊँ।
करहु मात यह अब मोपर दाया,
निर्मल होय सकल ममकाया।
मांगू मात यह बर दीजै,
सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।
जानूं नहिं कुछ नेम अचारा,
छमहु मात अपराध हमारा।
बारह मास करै जो पूजा,
ता सम जग में और न दूजा।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे,
फिर सुन्दर स्नान करावे।
चन्दन अक्षत पुष्प चढ़ावे,
धूप दीप नैवेद्य लगावे।
करे आचमन गंगा जल से,
ध्यान करे हृदय निर्मल से।
पाठ करे फिर चालीसा की,
अस्तुति करे मात तुलसी की।
यह विधि पूजा करे हमेशा,
ताके तन नहिं रहै क्लेशा।
करै मास कार्तिक का साधन,
सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।
है यह कथा महा सुखदाई,
पढ़ै सुने सो भव तर जाई।
यह श्री तुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय॥