श्री वामन देव भगवान विष्णु के दशावतार में से पांचवे अवतार है। श्री वामन चालीसा का नियमित रूप से पाठ करने पर भक्ति भाव, बुद्धि अथवा ज्ञान में वृद्धि होती है साथ ही भगवान के आशीर्वाद से समस्त संकटो से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति के सभी पाप, दुःख, दरिद्रता नष्ट हो जाते है।
वामन चालीसा || Vaman Chalisa
श्री वामन शरण जो आयके,
धरे विवेक का ध्यान ।
श्री वामन प्रभु ध्यान धर,
देयो अभय वरदान ॥
संकट मुक्त निक राखियो,
हे लक्ष्मीपति करतार ।
चरण शरण दे लीजिये,
विष्णु बटुक अवतार ॥
जय जय जय अमन बलबीरा ।
तीनो लोक तुम्ही रणधीरा ॥
ब्राह्मण गुण रूप धरो जब ।
टोना भारी नाम पड़ो तब ॥
भाद्रो शुक्ला द्वादशी आयो ।
वामन बाबा नाम कहाओ ॥
बायें अंग जनेऊ साजे ।
तीनो लोक में डंका बाजे ॥
सर में कमंडल छत्र विराजे ।
मस्तक तिलक केसरिया साजे ॥5॥
कमर लंगोटा चरण खड़ाऊँ ।
वामन महिमा निशदिन गाऊँ ॥
चोटी अदिव्य सदा सिर धारे ।
दीन दुखी के प्राणं हारे ॥
धरो रूप जब दिव्य विशाला ।
बलि भयो तब अति कंगाला ॥
रूप देख जब अति विसराला ।
समझ गया नप है जग सारा ॥
नस बलि ने जब होश संभाला ।
प्रकट भये तब दीन दयाला ॥10॥
दिव्य ज्योति बैंकुठ निवासा ।
वामन नाम में हुआ प्रकाशा ॥
दीपक जो कोई नित्य जलाता ।
संकट कटे अमर हो जाता ॥
जो कोई तुम्हरी आरती गाता ।
पुत्र प्राप्ति पल भर में पाता ॥
तुम्हरी शरण हे जो आता ।
सदा सहाय लक्ष्मी माता ॥
श्री हरी विष्णु के अवतार ।
कश्यप वंश अदिति दुलारे ॥15॥
वामन ग्राम से श्री हरी आरी ।
महिमा न्यारी पूर्ण भारी ॥
भरे कमंडल अद्भुत नीरा ।
जहां पर कृपा मिटे सब पीड़ा ॥
पूरा हुआ ना बलि का सपना ।
तीनो लोक तीनो अपना ॥
पूर्ण भारी पल में हो ।
राक्षस कुल को तुरंत रोऊ ॥
तुम्हरा वैभव नहीं बखाना ।
सुर नर मुनि सब गावै ही गाना ॥20॥
चित दिन ध्यान धरे वा मन को ।
रोग ऋण ना कोई तन को ॥
आये वामन द्वारा मन को ।
सब जन जन और जीवन धन को ॥
तीनो लोक में महिमा न्यारी ।
पाताल लोक के हो आभारी ॥
जो जन नाम रटत हैं तुम्हरा ।
रखते बाबा उसपर पहरा ॥
कृष्ण नाम का नाता गहरा ।
चरण शरण जो तुम्हरी ठहरा ॥25॥
पंचवटी में शोर निवासा ।
चारो और तुम हो प्रकाशा ॥
हाँथ में पोथी सदा विराजा ।
रंक का किया आचरण पल में राजा ॥
सम्पति सुमिति तोरे दरवाजे ।
ढोल निगाडे गाजे बाजे ॥
केसर चन्दन तुमको साजे ।
वामन ग्राम में तुम्हे ही विराजे ॥
रिद्धि सिद्धि के दाता तुम हो ।
दीन दुःखी के भ्राता तुम हो ॥30॥
वामन ग्राम के तुम जगपाला ।
तुम बिन पाये ना कोई निवाला ॥
तुम्हरी गाये सदा जो शरणा ।
उनकी इच्छा पूरी करना ॥
निकट निवास गोमती माता ।
दुःख दरिद्र को दूर भगाता ॥
तुमरा गान सदा जो गाता ।
उनके तुम हो भाग्य विद्याता ॥
भूत पिशाच नाम सुन भागै ।
असुर जाति खर-खर-खर खापैं ॥35॥
वामन महिमा जो जन गाईं ।
जन्म मरण का को कछु छुटी जाई ॥
अंत काल बैकुंठ में जाई ।
दिव्य ज्योति में वहां छिप जाई ॥
संकट कितना भी गंभीरा ।
वामन तोड़ सब गंभीरा ॥
जै जै जै विकट गोसाई ।
कृपा करो केवट की नाईं ॥
अंत काल बैकुंठ निवासा ।
फिर सिंदु में करे विलासा ॥40॥
चरण शरण निज राखियों,
अदिति माई के लाल ।
छत सी छाया राखियों,
तुलसीदास हरिदास ॥