श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करने से यश, सुख, समृद्धि, धन-वैभव, पराक्रम, सफलता, खुशी, संतान, नौकरी, प्रेम में वृद्धि होती है। वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता। श्री कृष्ण शक्ति-ज्ञान के स्वामी है, उनकी कृपा मात्र से ही इंसान समस्त विवादों से दूर हो जाता है और वो तेजस्वी बनता है।
श्री कृष्ण चालीसा || Shri Krishna Chalisa
|| दोहा ||
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पिताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
|| चौपाई ||
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥1॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥2॥
जय नट-नागर नाग नथैया।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥3॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥4॥
वंशी मधुर अधर धरी टेरौ।
होवे पूर्ण मनोरथ मेरो ॥5॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।
आज लाज भक्त की राखो ॥6॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥7॥
रंजित राजिव नयन विशाला।
मोर मुकुट वैजयंती माला ॥8॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।
कटि किंकणी काछन काछे ॥9॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।
छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥10॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥11॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो।
अका बका कागासुर मारयो ॥12॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।
भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला ॥13॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।
मसूर धार वारि वर्षाई ॥14॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।
गोवर्धन नखधारि बचायो ॥15॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।
मुख महं चौदह भुवन दिखाई ॥16॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो।
कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥17॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।
चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें ॥18॥
करि गोपिन संग रास विलासा।
सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥19॥
केतिक महा असुर संहारयो।
कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ॥20॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।
उग्रसेन कहं राज दिलाई ॥21॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥22॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।
लाये षट दश सहसकुमारी ॥23॥
दै भीमहि तृण चीर सहारा।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥24॥
असुर बकासुर आदिक मारयो।
भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥25॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो।
तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो ॥26॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥27॥
लखि प्रेम की महिमा भारी।
ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥28॥
भारत के पारथ रथ हांके।
लिए चक्र कर नहिं बल ताके ॥29॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये।
भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये ॥30॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।
विष पी गई बजाकर ताली ॥31॥
राना भेजा सांप पिटारी।
शालिग्राम बने बनवारी ॥32॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।
उर ते संशय सकल मिटायो ॥33॥
तब शत निन्दा करी तत्काला।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥34॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।
दीनानाथ लाज अब जाई ॥35॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला।
बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥36॥
अस नाथ के नाथ कन्हैया।
डूबत भंवर बचावत नैया ॥37॥
सुन्दरदास आस उर धारी।
दयादृष्टि कीजै बनवारी ॥38॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥39॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥40॥
|| दोहा ||
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि ॥
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