बांके बिहारी, कुंज बिहारी, श्री कृष्ण के ही नाम या कहे रूप है। कान्हा, गोपाल, घनश्याम, श्याम, गोविंद, मुरारी, मुरलीधर आदि नामो से भी श्री कृष्ण को भी वर्णन किया जाता है। इस लेख में हम आपको श्री कृष्ण की तीनो आरती बता रहे है जो भी आपको सही लगे अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा के समय उपयोग कर लीजियेगा। 


Shree Krishna Aarti


1.  श्री कृष्ण आरती || Shree Krishna Aarti


ॐ जय श्री कृष्ण हरे प्रभु जय श्री कृष्ण हरे
भक्तन के दुःख सारे पल में दूर करे। 
ॐ जय श्री कृष्ण हरे......|| 

परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी
जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी। 
ॐ जय श्री कृष्ण हरे......|| 

कर कंकन कोटि सोहत कानन में बाला
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला। 
ॐ जय श्री कृष्ण हरे......|| 

दीन सुधामा तारे दरिद्रों के दुःख टारे
गज के फंद छुड़ाऐ भव सागर तारे। 
ॐ जय श्री कृष्ण हरे......|| 

हिरन्यकश्यप संहारे नरहरि रूप धरे
पाहन से प्रभु प्रगटे जम के बीच परे। 
ॐ जय श्री कृष्ण हरे......|| 

केशी कंस विदारे नल कूबर तारे
दामोदर छवि सुन्दर भगतन के प्यारे। 
ॐ जय श्री कृष्ण हरे......|| 

काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे। 
ॐ जय श्री कृष्ण हरे......|| 

राज्य उग्रसेन पाए माता शोक हरे
द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे। 
ॐ जय श्री कृष्ण हरे......|| 

|| इति श्री कृष्ण जी आरती समाप्त ||



2. कुंजबिहारी जी की आरती 


आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;

अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की। 
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;

चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की। 
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद

टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की। 
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥





3.  बाँकेबिहारी जी की आरती 


श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ,
कुन्जबिहारी तेरी आरती गाऊँ।
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ,
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे,
प्यारी बंशी मेरो मन मोहे।
देखि छवि बलिहारी जाऊँ,
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

चरणों से निकली गंगा प्यारी,
जिसने सारी दुनिया तारी।
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ,
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

दास अनाथ के नाथ आप हो,
दुःख सुख जीवन प्यारे साथ हो।
हरि चरणों में शीश नवाऊँ,
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

श्री हरि दास के प्यारे तुम हो,
मेरे मोहन जीवन धन हो।
देखि युगल छवि बलि-बलि जाऊँ, 
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ,
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ।
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ,
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥