कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दू धर्म के लोकप्रिय त्यौहारो में से एक है। यह भगवान श्री नारायण के दशावतार में आठवे अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। भगवान श्री कृष्ण को कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकाधीश, वासुदेव, जगन्नाथ आदि नामो से भी जाना जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी हर साल भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म आठवीं संतान के रूप में मथुरा के दुष्ट राजा कंस के कारागृह में हुआ। उनकी माता का नाम देवकी और पिता वासुदेव है। कृष्ण जी का जन्म मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।


जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त

अष्टमी तिथि 06 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 37 मिनट से प्रारंभ होगी और 07 सितंबर को संध्या 04 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी।


कृष्ण जन्माष्टमी की कथा || Krishna Janmashtami


द्वापर युग में मथुरा के महाराजा और श्री कृष्ण के नाना उग्रसेन का शासन था। उनके पुत्र का नाम कंस था। कंस बहुत ही दुष्ट, अत्याचारी अथवा राक्षस स्वभाव का था। एक दिन कंस ने छल अथवा बलपूर्वक अपने पिता उग्रसेन से सिंहासन छीनकर उन्हें कारावास में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया।

कंस की बहन देवकी का विवाह यादव वंश के वासुदेव के साथ हुआ था। जब कंस अपनी बेहेन को विदा करने के लिए रथ पर सवार होकर जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई, की जिस बहन को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसकी आठवीं संतान के हाथो से तेरा वध होगा।


Krishna Janmashtami


आकाशवाणी सुनते ही कंस क्रोध से भर गया और अपनी ही बेहेन को मारने के लिए तैयार हो गया,  यह सोचकर की अगर देवकी को ही समाप्त कर दिया तो न उसका पुत्र होगा न मेरा वद्ध हो पायेगा। कंस को देवकी की ओर बढ़ता देख वासुदेव जी ने कंस को समझाया की तुम्हे देवकी के प्राण लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। में तुम्हे अपनी आठवीं संतान सौंप दूंगा तुम उसे खुद ही शिशु अवस्था में ही समाप्त कर देना।

कंस वासुदेव जी की बात मान गया और पुत्र होने तक वासुदेव-देवकी को कारावास में कैद कर दिया। कंस ने देवकी के गर्भ से उत्पन्न सातो संतानों को निर्दयतापूर्वक मार डाला। ये सोचकर की कही देवता उसके साथ छल न कर रहे हो। अंत में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ।

उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी प्रकाशमयी हो उठी। भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए और वासुदेव-देवकी जी से कहा, आप मुझे तत्काल गोकुल में नन्द जी के घर पहुँचा दो और उनके घर में जो पुत्री जन्मी है उसको लेकर कंस को सौंप दो। यह बात बोलते ही सभी कारागार के सिपाही मूर्छित हो गए कारागार का ताला अपने आप खुल गया और वासुदेव जी ने वैसा ही किया जैसा भगवान विष्णु ने उनसे कहा था।

जब वासुदेव ने उस कन्या को कंस के हाथ सौंपा तो कंस ने उस कन्या का वध करने के लिए उस कन्या को जैसे ही जमीन में पटका वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप में परिवर्तित हो गयी और बोली कि मुझे मारने से कोई लाभ नहीं तेरी मृत्यु देवकी की आठवीं संतान तो गोकुल पहुँच चुका है।

सभी बातें सुन कंस भयभीत और व्याकुल हो गया और समय-समय पर अपने आसुरी दैत्य को श्री कृष्ण की हत्या करने के लिए भेजता रहा। पुतना, तृणावर्त, वत्सासुर, बकासुर, अघासुर आदि दैत्यो को भेजने के बाद भी कंस विफल रहा श्री कृष्ण ने इन सब का वद्ध कर दिया था। अंत में श्री कृष्ण ने कंस का वध करके वापस अपने नाना उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।


कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि

सुबह जल्दी उठ कर स्नान आदि कर के भगवान श्री कृष्ण की चौकी सजाये उसमे लड्डू गोपाल जी को स्थापित करे। फिर उनकी पूजा करे लड्डू गोपाल की आरती उनके अष्टकम का पाठ कर सकते है। पूजा में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी जी का सुमिरन करे।  उन्हें फल, फूल, अक्षत, तुलसी पत्र, मिस्ठान अर्पित करे। उसके बाद श्री बाल कृष्ण का सुमिरन करके कृतं भजन कर सकते है। 


कृष्ण जन्माष्टमी महत्व

सनातन धर्म में श्री कृष्ण को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है इसलिए यह पर्व अत्यंत महत्ता रखता है। इस दिन पूरे देश में भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए विशेष सजावट करके उनके मंदिरो में अनेक प्रकार के पूजन और भजन किये जाते हैं। मध्यरात्रि में भगवान के जन्म के समय सभी लोग मंदिरों में एकत्रित होकर विशेष पूजा सम्पन्न करते हैं।

इस दिन पूरे भारत में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के उत्स्व पर दही हांड़ी का उत्सव मनाया जाता है। युवाओं का समूह मिट्टी के हांड़ी जो दही से भरी रहती है उसको तोड़ता है और धूम-धाम से उत्साह मानते है।

इस दिन घर परिवार में सभी लोग भगवान का व्रत रखते है और उनसे अपने परिवार के सुखी अथवा मंगलमय जीवन की प्राथना करते है। इस दिन श्री कृष्ण की पूजा से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। संतान प्राप्ति, आयु और समृद्धि की प्राप्ति के लिए जन्माष्टमी का पर्व विशेष महत्व रखता है।