माँ काली देवी पार्वती जी का रूप हैं काली माता के चार हाथ है और व्हे शांत रूप में दर्शायी जाती है अर्थात वह ज्यादा डरावनी नहीं है चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दिखाई देती है, जो कि ध्यान से देखने पर नजर आ जाती है किंतु जो महाकाली रूप है वह काली का उग्र रूप है उनके दस मुख, दस भुजाए और दस पैर है इन्हे ही दुर्गा, दस महाविद्याओं की स्वामिनी, सप्तशती में महाकाली कहा गया, जो देवताओं की पुकार पर माता पार्वती के शरीर से उत्पन्न हुई थीं।
काली माँ का पूजन करने से सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है देवी से हर प्रकार के सुख प्राप्त किए जा सकते हैं। इनका रौद्र रूप अर्थात महाकाली रूप शत्रुओं के लिए विनाशकारी है। ये हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का नाश करता है प्रतिदिन पूजा के समय महाकाली की आरती करके आप भी उनकी कृपा के पात्र बन सकते है।
इस लेख में हम आपको महाकाली की दो आरती बता रहे है आप कोई भी एक अपने अनुसार पूजा के समय कर सकते है।
महाकाली आरती || Mahakali Aarti
जय काली माता, माँ जय महाकाली माँ।
रतबीजा वध कारिणी माता।
सुरनर मुनि ध्याता, माँ जय महाकाली माँ॥
दक्ष यज्ञ विदवंस करनी माँ शुभ निशूंभ हरलि।
मधु और कैितभा नासिनी माता।
महेशासुर मारदिनी,
ओ माता जय महाकाली माँ॥
हे हीमा गिरिकी नंदिनी प्रकृति रचा इत्ठि।
काल विनासिनी काली माता।
सुरंजना सूख दात्री हे माता॥
अननधम वस्तराँ दायनी माता आदि शक्ति अंबे।
कनकाना कना निवासिनी माता।
भगवती जगदंबे,
ओ माता जय महाकाली माँ॥
दक्षिणा काली आध्या काली, काली नामा रूपा।
तीनो लोक विचारिती माता धर्मा मोक्ष रूपा॥
ओ माता जय महाकाली माँ॥
अन्य महाकाली आरती || Other Mahakali Aarti
मंगल की सेवा सुन मेरी देवा ,
हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी ध्वजा नारियल
ले ज्वाला तेरी भेंट करें।
सुन जगदम्बे कर न विलम्बे,
संतन के भडांर भरे।
सन्तान प्रतिपाली सदा खुशहाली,
जै काली कल्याण करे ।
बुद्धि विधाता तू जग माता ,
मेरा कारज सिद्ध करे।
चरण कमल का लिया आसरा,
शरण तुम्हारी आन पड़े।
जब जब भीर पड़ी भक्तन पर,
तब तब आय सहाय करे।
बार बार तै सब जग मोहयो,
तरूणी रूप अनूप धरे।
माता होकर पुत्र खिलावे,
कही भार्या भोग करे॥
संतन सुखदायी,सदा सहाई ,
संत खड़े जयकार करे ।
ब्रह्मा ,विष्णु,महेश फल लिए
भेंट देन सब द्वार खड़े|
अटल सिहांसन बैठी माता,
सिर सोने का छत्र धरे ॥
वार शनिचर कुंकुमवरणी,
जब लुकुण्ड पर हुक्म करे ।
खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये,
रक्त बीज को भस्म करे।
शुम्भ निशुम्भ क्षणहि में मारे ,
महिषासुर को पकड़ धरे ॥
आदित वारी आदि भवानी ,
जन अपने को कष्ट हरे ।
कुपित होकर दानव मारे,
चण्ड मुण्ड सब चूर करे ॥
जब तुम देखी दया रूप हो,
पल मे सकंट दूर टरे।
सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता ,
जन की अर्ज कबूल करे ॥
सात बार की महिमा बरनी,
सब गुण कौन बखान करे।
सिंह पीठ पर चढी भवानी,
अटल भवन मे राज्य करे ॥
दर्शन पावे मंगल गावे ,
सिद्ध साधक तेरी भेट धरे ।
ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे,
शिव शंकर हरी ध्यान धरे ॥
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती,
चॅवर कुबेर डुलाय रहे।
जय जननी जय मातु भवानी ,
अटल भवन मे राज्य करे ॥
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली,
मैया जै काली कल्याण करे।
|| इति श्री महाकाली आरती ||
यह भी पढ़ें -