हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार लक्ष्मी नारायण की पूजा करने से घर में कभी भी धन संपदा, सुख समृद्धि की कमी नही रहती। श्री लक्ष्मी नारायण पूजा दरिद्रता या गरीबी को दूर करने का एक अचूक उपाय माना जाता है। 

श्री लक्ष्मी नारायण के संयुक्त पूजन से सुख-संपत्ति, धन, वैभव, समृद्धि, कारोबार में सफलता, लंबी उम्र, अच्छी सेहत और आध्यात्मिक विकास का आशीर्वाद भी मिलता है। इस लेख में दो लक्ष्मी नारायण स्तोत्र के बारे में बताया गया है दोनों में से आप किसी एक का चयन कर उसका नित्य पाठ करे। 

अगर आपकी कोई विशेष कामना है तो उसको ध्यान में रखकर भगवान की पूजा का संकल्प ले सही विधि से पूजन करे कामना जरूर पूरी होगी। शुक्रवार या रविवार का दिन  पूजा के लिए बहुत शुभ है। आप चाहे तो प्रतिदिन श्री लक्ष्मीनारायण के स्तोत्र का पाठ कर सकते है। इसके बाद श्री लक्ष्मीनारायण की आरती अवश्य करे।


श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र || Shri Lakshmi Narayan Stotra


|| श्रीलक्ष्मीनारायणस्तोत्रम् ||


श्रीनिवास जगन्नाथ श्रीहरे भक्तवत्सल ।
लक्ष्मीपते नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥1॥

राधारमण गोविंद भक्तकामप्रपूरक ।
नारायण नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥2॥

दामोदर महोदार सर्वापत्तीनिवारण ।
ऋषिकेश नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥3॥

गरुडध्वज वैकुंठनिवासिन्केशवाच्युत ।
जनार्दन नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥4॥

शंखचक्रगदापद्मधर श्रीवत्सलांच्छन ।
मेघश्याम नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात् ॥5॥

त्वं माता त्वं पिता बंधु: सद्गुरूस्त्वं दयानिधी: ।
त्वत्तोs न्यो न परो देवस्त्राही मां भवसागरात् ॥6॥

न जाने दानधर्मादि योगं यागं तपो जपम ।
त्वं केवलं कुरु दयां त्राहि मां भवसागरात् ॥7॥

न मत्समो यद्यपि पापकर्ता न त्वत्समोsथापि हि पापहर्ता ।
विज्ञापितं त्वेतद्शेषसाक्षीन मामुध्दरार्तं पतितं तवाग्रे ॥8॥


|| इति श्री लक्ष्मीनारायण स्तोत्र संपूर्णम् ||


Shri Lakshmi Narayan Stotra


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श्री कृष्ण द्वारा रचित लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम् 


|| ध्यानम् ||


चक्रं विद्या वर घट गदा दर्पणम् पद्मयुग्मं दोर्भिर्बिभ्रत्सुरुचिरतनुं मेघविद्युन्निभाभम् ।
 
गाढोत्कण्ठं विवशमनिशं पुण्डरीकाक्षलक्ष्म्यो-रेकीभूतं वपुरवतु वः पीतकौशेयकान्तम् ॥1॥
 
 
शंखचक्रगदापद्मकुंभाऽऽदर्शाब्जपुस्तकम्।
 
बिभ्रतं मेघचपलवर्णं लक्ष्मीहरिं भजे ॥2॥
 
 
विद्युत्प्रभाश्लिष्टघनोपमानौ शुद्धाशयेबिंबितसुप्रकाशौ।
 
चित्ते चिदाभौ कलयामि लक्ष्मी- नारायणौ सत्त्वगुणप्रधानौ ॥3॥
 
 
लोकोद्भवस्थेमलयेश्वराभ्यां शोकोरुदीनस्थितिनाशकाभ्याम्।
 
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥4॥
 
 
सम्पत्सुखानन्दविधायकाभ्यां भक्तावनाऽनारतदीक्षिताभ्याम् ।
 
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥5॥
 
 
दृष्ट्वोपकारे गुरुतां च पञ्च-विंशावतारान् सरसं दधत्भ्याम् ।
 
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥6॥
 
 
क्षीरांबुराश्यादिविराट्भवाभ्यां नारं सदा पालयितुं पराभ्याम् ।
 
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥7॥
 
 
दारिद्र्यदुःखस्थितिदारकाभ्यां दयैवदूरीकृतदुर्गतिभ्याम्
 
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥8॥
 
 
भक्तव्रजाघौघविदारकाभ्यां स्वीयाशयोद्धूतरजस्तमोभ्याम्।
 
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥9॥
 
 
रक्तोत्पलाभ्राभवपुर्धराभ्यां पद्मारिशंखाब्जगदाधराभ्याम्।
 
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥10॥
 
 
अङ्घ्रिद्वयाभ्यर्चककल्पकाभ्यां मोक्षप्रदप्राक्तनदंपतीभ्याम्।
 
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥11॥
 
 
इदं तु यः पठेत् स्तोत्रं लक्ष्मीनारयणाष्टकम्।
 
ऐहिकामुष्मिकसुखं भुक्त्वा स लभतेऽमृतम् ॥12॥
 
|| इति श्रीकृष्णकृतं लक्ष्मीनारयण स्तोत्रं संपूर्णम् ||