निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले आने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारतीय पंचांग के मुताबिक यह आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष और दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में आती है। 


Yogini Ekadashi Vrat Katha


भगवान विष्णु की करे पूजा

एकादशी के सभी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते है। इस दिन आप विधि पूर्वक भगवान नारायण का व्रत रखे और उनकी पूजा आराधना करे। 


योगिनी एकादशी 2023 व्रत तिथि 

एकादशी तिथि प्रारम्भ - 13 जून 2023 को 09:28 AM

एकादशी तिथि समाप्त - 14 जून 2023 को 08:48 AM 


योगिनी एकादशी पूजा विधि

  1. योगिनी एकादशी के कार्य एक दिन पहले से ही शुरू हो जाते हैं। दशमी तिथि की रात भक्तो को जौ, गेहूं और मूंग दाल से बने भोजन से परहेज करना चाहिए।
  2. एकादशी तिथि के दिन सबसे पहले प्रथा उठ कर स्नान आदि कर ले बाद भगवान नारायण का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प ले। 
  3. इसकेव बाद कलश की स्थापना करे। कलशा स्थापना के बाद कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रख कर पूजा करे। 
  4. व्रत की रात को जागरण भजन जरूर करे ये काफी फलदायी होता है। 
  5. व्रत के दौरान नमक युक्त भोजन नहीं करना चाहिए। 


योगिनी एकादशी व्रत महत्व 

योगिनी एकादशी का उपवास सभी पापों को दूर कर वर्तमान जीवन में सभी सुख प्रदान करता है। योगिनी एकादशी का व्रत रखने के बाद व्यक्ति स्वर्गलोक को प्राप्त कर सकता है। योगिनी एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि योगिनी एकादशी का उपवास 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है।


योगिनी एकादशी व्रत कथा 

महाभारत के समय भगवान कृष्ण युधिष्ठिर जी को इस कथा के बारे में बतलाते है की - कुबेर नामक राजा अलकापुरी नाम की नगरी में राज्य करता था। वह भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उनका "हेममाली" नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा में चढ़ाने हेतु राजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की विशालाक्षी नाम की अति सुन्दर पत्नी थी।

एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लेकर आ रहा था, किन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा। इस भोग-विलास में दोपहर हो गई। हेममाली की राह देखते जब दोपहर हो गई तो राजा ने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आदेश दिया कि तुम लोग जाकर पता लगाओ कि हेममाली अभी तक पुष्प लेकर क्यों नहीं आया।

जब सेवकों ने पता लगाया तो उन्होंने तुरंत राजा कुबेर को सूचित कर दिया की हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है। इस बात को सुन राजा कुबेर काफी क्रोधित हुए और उन्होंने अपने सेवको को हेममाली को लाने की आज्ञा दी। काँपता हुआ हेममाली राजा के सामने उपस्थित हुआ। राजा ने क्रोधित होकर कहा तूने मेरे परम पूजनीय देव भगवान शिव का अपमान किया है। 

मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करेगा। राजा कुबेर के श्राप से वह तत्काल स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया। उसकी पत्नी भी उससे बिछड़ गई। धरतीलोक में आकर उसने भयंकर कष्ट भोगे, किन्तु शिव जी की कृपा से उसकी बुद्धि भ्र्ष्ट न हुई और उसे पूर्व जन्म की भी सुध रही। 

अनेक कष्टों से पीड़ित तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मो को याद करता हुआ वह हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा। वह पर वो मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम जा पहुँचा। ऋषि को देखकर हेममाली ने उन्हें प्रणाम किया और दुखी मन से उनके चरणों में गिर पड़ा। 

हेममाली की हालत देख मार्कण्डेय ऋषि ने उससे पूछा तूने कौन-से निकृष्ट कर्म किये हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और भयानक दर्द भोग रहा है। महर्षि की बात सुनकर हेममाली बोला हे प्रभु मैं राजा कुबेर का अनुचर हुआ करता था। मेरा नाम हेममाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर भगवान शिव की पूजा के समय राजा कुबेर को दिया करता था। 

एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फसने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा और दोपहर तक पुष्प न पहुँचा सका। जिसके कारण राजा ने क्रोधित होकर मुझे शाप श्राप दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनकर दुख भोगेगा। इस कारण मैं कोढ़ी बन भयंकर कष्ट भोग रहा हूँ, कृपा करके आप कोई ऐसा उपाय बताए, जिससे मेरी मुक्ति हो।

यह सुन कर मार्कण्डेय ऋषि बोले, हेममाली तूने मेरे सामने सब कुछ सच बोला है, इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूँ। यदि तू आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएँगे।

महर्षि के वचन सुन हेममाली बहुत प्रसन्न हुआ और उनके कहे अनुसार योगिनी एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से उसके सारे कष्ट अथवा पाप नष्ट हुए और वह अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

यहाँ कथा सुनाने के बाद भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर जी से कहते है की इस योगिनी एकादशी की कथा का फल 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष प्राप्त करके प्राणी स्वर्ग में अपना अधिकार बना लेता है।