धरती पे जन्म लेने वाला हर इंसान ईश्वर पर विश्वास रखता है और अपनी भक्ति और अच्छे कर्मो से प्रभु को ख़ुश रखता है। लेकिन हर व्यक्ति का भक्ति करने का तरीका अलग होता है। हर कोई अपनी तरह से अपने प्रभु को प्रसन्न करने का प्रयास करते रहता है। 

भगवान श्री कृष्ण खुद अपने चार प्रकार के भक्तो के बारे में बताते है। तो चलिए जानते है भगवान श्री कृष्ण ने किन चार प्रकार के भक्तो के बारे में बताया है। 


according to Shri Krishna types of devotees


भक्त कितने प्रकार के होते है। 

योग, ध्यान, ज्ञान, तंत्र, विद्या और कर्म के अलावा भक्ति से भी मनुष्य मुक्ति का मार्ग प्राप्त करता है। जानते है गीता के अनुसार चार प्रकार के भक्तो के बारे में जो श्री कृष्ण स्वयं बताते है -   


1. अर्थार्थी भक्त

इस प्रकार के भक्तो को अपने सुख-सुविधा, धन-सम्पत्ति, वैभव आदि की इच्छा हो जाती है। इस प्रकार के भक्त भौतिक वस्तु की कामना की इच्छा मन में रखकर भगवान भक्ति करते है। 

वे ये सब प्राप्त करना चाहते है पर किसी और से नहीं बल्कि भगवान की भक्ति करके, उनका यह मानना होता है की इस जीवन में भगवान के अलावा कोई और दूसरा उनकी ये इच्छा पूर्ण नहीं कर सकता। 

इन बातो को ध्यान में रखते हुए व्हे मनुष्य अपनी कामनाओ को ध्यान में रखकर भगवान के भजन कीर्तन, पूजा पाठ, करते है धन, भौतिक वास्तु और कामनाए के लिए वो भगवान पर ही निष्ठां रखते है। 


2. आर्त भक्त

अपने ऊपर आफत आने पर, संकट में पड़ जाने पर, दुखी होने पर, दर्द होने पर, प्राण संकट में होने पर जो मनुष्य भगवान को याद करता हो और उनसे अपने सारे कष्टों को हरने की भगवान से प्राथना करता हो वह मनुष्य आर्त भक्त कहलाता है।     

वह भगवान को केवल तब याद करेगा जब कोई मुसीबत या कोई शारीरक कष्ट उसको हानि पहुँचता है। व्हे कोई दूसरा न उपाय ढूंढेगा न उसपे विचार करेगा व्हे केवल भगवान से ही अपने कष्ट को दूर करने की कामना करेगा। 


3. जिज्ञासु भक्त

जिज्ञासु का अर्थ होता है जिसको कुछ जानने की जोरदार इच्छा हो। भगवान, शक्ति, ज्ञान आदि वह बातें जो इंसान का मन विचलित करती हो ऐसी इच्छा को जानने के लिए जिज्ञासु भक्त भगवान की भक्ति करता है। 

वह भगवान तत्व जानने उन्हें पाने की आकांक्षा रखता है इसी वजह से वह भक्ति करता है क्योंकि उसका भी यह मानना होता है की उसकी जिज्ञासा केवल भगवान ही शांत कर सकते है। 




4. ज्ञानी भक्त

जिज्ञासु, आर्त और अर्थार्थी ये वह भक्त होते है जिनकी भक्ति किसी इच्छा को लेकर होती है लेकिन ज्ञानी भक्त इन सब से अलग होते है क्योंकि उनकी भक्ति में कोई इच्छा नहीं होती। भगवान खुद ज्ञानी को अपनी आत्मा कहते है। 

भगवान ज्ञानी भक्त के साथ सदैव रहते है। ज्ञानी निष्काम भाव से भगवान की भक्ति करता है, अपने काम, अपनी इच्छा वह यह सब खुद अपनी मेहनत से प्राप्त करता है। कभी भौतिक वस्तु की कामना भगवान से नहीं करता।  




सच्चा एवं सर्वश्रेष्ठ भक्त कौन है?

सच्चा सर्वश्रेष्ठ भक्त इसके बारे में कहना बहुत कठिन है क्योकि भक्ति वो समुन्द्र है जिसकी कोई गहराई नहीं। सच्ची भक्ति सच्ची लगन और सच्ची निष्ठा के साथ होती है। 

एक सच्चा भक्त अपने भगवान से कोई मांग नहीं करता क्योंकि उसको सिर्फ प्रभु भक्ति चाहिए वह उसमे ही मग्न रहता है उसमे ही उसको ख़ुशी मिलती है। 

वह यह बात अच्छे से जानता है की उसके प्रभु को उसके बारे में सब मालूम है और व्हे उसका ख्याल रख लेंगे। उसने अपने मन में भले ही अपने भगवान को हज़ार बार देखा हो लेकिन उस  में भी एक लालसा होती है की उसके नेत्र एक बार अपने प्रभु को साक्षात् देख ले।