प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश सुख, शांति और समृद्धि के देवता हैं और इसलिए किसी भी शुभ काम को करने से पहले गणपति की पूजा की जाती है। उनकी पूजा मात्र से सारे काम सम्पन्न होते हैं।
पर क्या आप भगवान श्री गणेश के जन्म के बारे में जानते है, उनकी पूजा सबसे पहले क्यों की जाती है? उनके अवतार, मंत्र और उनके नामो के बारे में? अगर नहीं तो निवेदन इस लेख को अंत तक पढियेगा।
कैसे हुआ श्री गणेश (Shri Ganesh) का जन्म?
भगवान गणेश के जन्म को लेकर हमारे ग्रंथों-पुराणों में तीन कहानिया प्रचलित है चलिए आपको तीनो के बारे में बताते है।
1. गणेश चालीसा
2. वराहपुराण
वराहपुराण के अनुसार भगवान गणेश को शिव जी ने पचंतत्वों से बनाया है। जब भगवान शिव गणेश जी को बना रहे थे तब उन्होंने उनका अनोखा और अत्यंत रुपवान रूप बनाया, इसके बाद जैसे ही यह खबर देवताओं को मिली।
तो उन्हें डर सताने लगा कि कहीं गणेश जी सबके आकर्षण का केंद्र ना बन जाए। इस डर को भगवान शिव भी भांप गए थे, जिसके बाद भगवान शिव ने गणेश जी के पेट को बड़ा कर दिया और मुंह हाथी का लगा दिया।
3. शिव-पुराण
शिव-पुराण की मान्यताओं के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने शरीर में हल्दी लगाई, और जब उन्होंने वह हल्दी उतारी तो उन्होंने उससे एक पुतला बना दिया। बाद में उन्होंने उस पुतले में प्राण दाल दिए, इस तरह विनायक पैदा हुए।
उसके बाद माता ने गणेश जी को आदेश दिया की तुम मेरे द्वार पर बैठ जाओ और उसकी रक्षा करो किसी को भी अंदर आने मत देना। कुछ समय बाद भगवान शिव वहाँ आये और जैसे ही भगवान शिव अंदर जा रहे थे गणेश जी ने उनका रास्ता रोक लिया और उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया। शिव जी को गणेश जी के बारे में पता नहीं था, उनमे आपस में विवाद हो गया और उस विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया।
भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना त्रिशूल निकाला और गणेश का सिर काट डाला। जैसे ही यहा बात माता पार्वती को पता चली माता वहाँ आयी और भगवान शिव से गुस्सा हो गयी और रोने लगी की आपने मेरे पुत्र का सर काट दिया।
शिवजी ने पूछा कि ये तुम्हारा पुत्र कैसे हो सकता है। इसके बाद माता पार्वती ने शिवजी को पूरी कथा बताई। शिवजी ने माता पार्वती को मनाते हुए कहा कि ठीक है मैं इसको फिर से जीवित कर देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए।
इस पर शिवजी ने गरूड़ जी को आदेश दिया कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना। गरूड़ जी भटकते रहे पर उन्हें ऐसी कोई भी माँ नहीं मिली क्योंकि हर माँ अपने बच्चे की तरफ मुंह कर के सोती है।
काफी ढूढ़ने के बाद गरूड़ जी को एक हथिनी दिखाई दी, हथिनी का शरीर इस प्रकार होता हैं कि वह बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती। गरूड़ जी उस शिशु हाथी का सिर ले आए, भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया, उसमें प्राण डाल दिए, इस तरह श्रीगणेश को हाथी का सिर लगा।
भगवान गणेश (Lord Ganesha) के अवतार
वैसे तो पुराणों ग्रंथो के अनुसार भगवान गणेश के अनेको अवतार है लेकिन उनमे से 8 अवतार सबसे प्रशिद्ध माने गए है। यहाँ अवतार गणेश जी ने राक्षसों का वध कर ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए सृष्टि कल्याण हेतु लिए थे।
1. वक्रतुंड
2. एकदंत
महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नाम के राक्षस की रचना की, वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली, शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुर्ण बनाया। मदासुर ने भगवती की कठोर साधना कर उन्हें प्रसन्न कर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का शासक बनने का वरदान प्राप्त किया। पूरे ब्रह्मांड में शासन के बाद उसने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करके देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू किया।
सारे देवता परेशान होकर गणेश जी की आराधना करने लगे, तब श्री गणेश एकदन्त रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं, एक दांत, बड़ा पेट और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु, अंकुश और एक खिला हुआ कमल था। श्री गणेश के एकदन्त अवतार ने मदासुर को पराजित करके पाताल भेज दिया और देवताओ को अभय वरदान दिया।
3. महोदर
जब भगवान कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध किया गया, तब गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के राक्षस को देवताओ के विरुद्ध खड़ा कर दिया। मोहासुर से तंग आकर देवताओ ने श्री गणेश का स्मरण किया तब भगवान गणेश महोदर (यानी बड़े पेट वाले) के रूप में प्रकट हुए। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में उसका अंत करने पहुंचे, तब भगवान नारायण की समझाइश पर मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।
4. लंबोदर
क्रोधासुर नामक दैत्य ने सूर्य देव की तपस्या कर उनसे ब्रह्माण्ड विजय का वरदान प्राप्त किया। जैसे ही ये बात देवताओ को पता चली सब भयभीत हो गए। क्रोधासुर जैसे ही देवताओ के खिलाफ युद्ध के लिए निकला तब गणेश जी ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया, और उसको अपनी ज्ञान शक्ति से समझाया। क्रोधासुर ने गणेश जी की समझाइश पर अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।
5. विकट
भगवान नारायण द्वारा जालंधर नामक राक्षस के अंत के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, जिसका नाम कामासुर था। कामासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उनसे अजय, अमर अथवा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी बनने का वरदान प्राप्त किया, उसने तीनो लोको में अपना अधिकार कर लिया और बहुत अत्याचार करने लगा।
अंत श्री गणेश ने विकट रूप में अवतरित हुए और अपनी सवारी मोर में बैठ कर कामासुर की नगरी में चढाई कर दी उन्होंने कामासुर से युद्ध करके उसको पराजित कर दिया। और कामासुर के अत्याचारों से तीनो लोको को मुक्त किया।
6. गजानन
लोभासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उनसे तीनो लोको निर्भय होने का वरदान प्राप्त किया और धरती और स्वर्ग में अपना अधिकार कर लिया। बाद में उसने कैलाश में सदेश भेजा की या तो उससे युद्ध करो या कैलाश खाली करो। तब श्री गणेश ने लोभासुर का संदेश स्वीकार कर गजानन रूप में अवतरित हुए पर युद्ध से पहले ही गुरु शुक्राचार्य की समझाइश पर लोभासुर भगवान गजानन के शरणागत हो गए।
7. विघ्नराज
शम्बरासुर के शिष्य ममतासुर ने श्री गणेश की तपस्या कर उनसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी बनने का वरदान प्राप्त किया। तीनो लोको में अपना राज स्थापित करने के बाद उसने सभी देवताओ को बंदी बना दिया और कारागार में डाल दिया। सभी देवताओ ने श्री गणेश की आराधना की अंत श्री गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए, उन्होंने ममतासुर से युद्ध कर उसको पराजित किया, और सभी लोको अथवा देवताओ को ममतासुर से मुक्त करवाया।
8. धूम्रवर्ण
गुरु शुक्राचार्य के शिष्य अहंतासुर नामक असुर ने भगवान गणेश की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किये। और उन वरदानो का दुरपयोग कर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने अधीन कर लिया उसके अत्याचारों से तीनो लोको में हाहाकार मच गया।
देवताओ की पुकार पर भगवान गणेश ने अहंतासुर के अत्याचारों से तीनो लोको की मुक्ति के लिए धूम्रवर्ण का अवतार लिया। उनका रूप विकराल रंग धुंए जैसा था। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण के रुप में गणेश जी ने अहंतासुर को पराजित कर उसको अपनी शरण में लिया।
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गणेश जी (Ganesh ji) मंत्र
ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
किसी भी कार्य के प्रारम्भ में इस मंत्र के जाप से गणेश जी को प्रसन्न करना चाहिए।
ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
गणेश जी को प्रसन्न करने का एक मंत्र यह भी है।
ऊँ गं गणपतये नमः ।।
इस मंत्र का जाप करने से गणेश जी बुद्धि प्रदान करते हैं।
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित्।
मंगल कार्यो की पूर्ति और बाधाओं के नाश के लिए गणेश जी के इस मंत्र का जाप करें।
एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
सिद्धि की प्राप्ति हेतु गणेश जी के इस मंत्र का जाप करे।
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(गणेश चतुर्थी 2023 - मंगलवार, 19 सितम्बर)
गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए लोग उनके जन्म दिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में मानते है।
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गणेश जी के प्रमुख 15 मंदिर?
- सिद्धि विनायक गणेश मंदिर, मुंबई
- खजराना गणेश मंदिर, इंदौर
- रणथंबौर गणेश मंदिर, राजस्थान
- अष्टविनायक मंदिर, महाराष्ट्र
- मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर
- श्रीमंत दग्दूशेठ हलवाई मंदिर, पुणे
- रॉक फोर्ट उच्ची पिल्लयार मंदिर, तमिलनाडु
- गणपतिपुले मंदिर, रत्नागिरी
- गणेश टोक मंदिर, गंगटोक
- मनकुला विनायगर मंदिर, पुडुचेरी
- मधुर महागणपति मंदिर, केरल
- चिंतामन गणपति मंदिर, उज्जैन
- कनिपकम विनायक मंदिर, चित्तूर
- श्री डोडा गणपति मंदिर, बेंगलुरु
- डोडीताल, उत्तराखंड -उत्तरकाशी जिले के डोडीताल इलाके को गणेशजी का जन्म स्थान भी माना जाता है।