प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश सुख, शांति और समृद्धि के देवता हैं और इसलिए किसी भी शुभ काम को करने से पहले गणपति की पूजा की जाती है। उनकी पूजा मात्र से सारे काम सम्पन्न होते हैं। 

पर क्या आप भगवान श्री गणेश के जन्म के बारे में जानते है, उनकी पूजा सबसे पहले क्यों की जाती है? उनके अवतार, मंत्र और उनके नामो के बारे में? अगर नहीं तो निवेदन इस लेख को अंत तक पढियेगा।


कैसे हुआ श्री गणेश (Shri Ganesh) का जन्म?

भगवान गणेश के जन्म को लेकर हमारे ग्रंथों-पुराणों में तीन कहानिया प्रचलित है चलिए आपको तीनो के बारे में बताते है।


1. गणेश चालीसा 

गणेश चालीसा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने पुत्र की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया इससे प्रसन्न होकर स्वयं भगवान गणेश ब्राह्मण का रूप धर कर माता के पास पहुंचे और उन्हें यह वरदान दिया कि आपको बिना गर्भ धारण किए ही बुद्धिमान और दिव्य पुत्र की प्राप्ति होगी। ऐसा कह कर वे गायब/अंतर्ध्यान हो गए और फिर बालक के रूप में कैलाश आ गए।

इसके चलते भगवान शिव और माता पार्वती ने कैलाश पर महा-उत्त्सव रखा और सभी देवी, देवता, सुर, गंधर्व और ऋषि, मुनि को आमंत्रित किया। माता पार्वती ने सबको चलकर बालक को देखने और आशीष देने का आग्रह किया। वहा पर शनि देव भी थे और अपनी दृष्टि की वजह से बच्चे को देखने से बच रहे थे।

यहां देख माता पार्वती को बुरा लगा उन्होंने शनि देव से आपत्ति जताई की आपको यह उत्सव नहीं भाया, बालक का आगमन भी पसंद नहीं आया। शनि देव दुविधा में पड़ गए और जैसे ही उनकी दृष्टि बालक पर पड़ी बालक का सिर आकाश में उड़ गया।

ख़ुशी का माहौल मातम में परिवर्तित हो गया। माता पार्वती क्रोधित हो गई। चारों दिशाओ में हाहाकार मच गया। तुंरत गरूड़ जी को चारों दिशाओ में भेजा और उत्तम सिर लाने को कहा गया। गरूड़ जी काफी ढूढ़ने के बाद हाथी के बच्चे का सिर लेकर आए। तब भगवान शिव ने बालक के शरीर से सर जोड़कर प्राण डाले। इस तरह गणेश जी का सिर हाथी का हुआ।


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2. वराहपुराण

वराहपुराण के अनुसार भगवान गणेश को शिव जी ने पचंतत्वों से बनाया है। जब भगवान शिव गणेश जी को बना रहे थे तब उन्होंने उनका अनोखा और अत्यंत रुपवान रूप बनाया, इसके बाद जैसे ही यह खबर देवताओं को मिली। 

तो उन्हें डर सताने लगा कि कहीं गणेश जी सबके आकर्षण का केंद्र ना बन जाए। इस डर को भगवान शिव भी भांप गए थे, जिसके बाद भगवान शिव ने गणेश जी के पेट को बड़ा कर दिया और मुंह हाथी का लगा दिया।


3. शिव-पुराण

शिव-पुराण की मान्यताओं के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने शरीर में हल्दी लगाई, और जब उन्होंने वह हल्दी उतारी तो उन्होंने उससे एक पुतला बना दिया। बाद में उन्होंने उस पुतले में प्राण दाल दिए, इस तरह विनायक पैदा हुए।  

उसके बाद माता ने गणेश जी को आदेश दिया की तुम मेरे द्वार पर बैठ जाओ और उसकी रक्षा करो किसी को भी अंदर आने मत देना। कुछ समय बाद भगवान शिव वहाँ आये और जैसे ही भगवान शिव अंदर जा रहे थे गणेश जी ने उनका रास्ता रोक लिया और उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया। शिव जी को गणेश जी के बारे में पता नहीं था, उनमे आपस में विवाद हो गया और उस विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया। 

भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना त्रिशूल निकाला और गणेश का सिर काट डाला। जैसे ही यहा बात माता पार्वती को पता चली माता वहाँ आयी और भगवान शिव से गुस्सा हो गयी और रोने लगी की आपने मेरे पुत्र का सर काट दिया। 

शिवजी ने पूछा कि ये तुम्हारा पुत्र कैसे हो सकता है। इसके बाद माता पार्वती ने शिवजी को पूरी कथा बताई। शिवजी ने माता पार्वती को मनाते हुए कहा कि ठीक है मैं इसको फिर से जीवित कर देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए। 

इस पर शिवजी ने गरूड़ जी को आदेश दिया कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना। गरूड़ जी भटकते रहे पर उन्हें ऐसी कोई भी माँ नहीं मिली क्योंकि हर माँ अपने बच्चे की तरफ मुंह कर के सोती है। 

काफी ढूढ़ने के बाद गरूड़ जी को एक हथिनी दिखाई दी, हथिनी का शरीर इस प्रकार होता हैं कि वह बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती। गरूड़ जी उस शिशु हाथी का सिर ले आए, भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया, उसमें प्राण डाल दिए, इस तरह श्रीगणेश को हाथी का सिर लगा।


भगवान गणेश (Lord Ganesha) के अवतार 

वैसे तो पुराणों ग्रंथो के अनुसार भगवान गणेश के अनेको अवतार है लेकिन उनमे से 8 अवतार सबसे प्रशिद्ध माने गए है। यहाँ अवतार गणेश जी ने राक्षसों का वध कर ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए सृष्टि कल्याण हेतु लिए थे। 


1. वक्रतुंड 

श्री गणेश ने वक्रतुंड अवतार राक्षस मत्सरासुर के भय व आतंक से देवताओ की रक्षा के लिए लिया था। इस रूप की सवारी सिंह है, राक्षस मत्सरासुर ने वर्षो शिवजी की तपस्या कर उनसे अभय का वरदान प्राप्त किया था, गुरु शुक्राचार्य ने मत्सरासुर को दैत्यों का राजा बनाया। उसने सम्पूर्ण जगत(स्वर्ग, धरती, पाताल) में अपना अधिकार कर दिया था, उसके दो पुत्र थे सुंदरप्रिय और विषयप्रिय, ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे।  

राक्षस मत्सरासुर के विनाशकारी कर्मो से देवता परेशान हो गए सब मिलके भगवान शिव की शरण में गए तब भोलेनाथ ने सबको श्री गणेश का आवाहन करने को कहा, अंत श्री गणेश अपने वक्रतुंड अवतार में अवतरित हुए और मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया। मत्सरासुर ने उनके सामने समर्पण कर दिया और उनके आदेश अनुसार पाताल में चला गया। 

2. एकदंत 

महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नाम के राक्षस की रचना की, वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली, शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुर्ण बनाया। मदासुर ने भगवती की कठोर साधना कर उन्हें प्रसन्न कर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का शासक बनने का वरदान प्राप्त किया। पूरे ब्रह्मांड में शासन के बाद उसने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करके देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू किया।

सारे देवता परेशान होकर गणेश जी की आराधना करने लगे, तब श्री गणेश एकदन्त रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं, एक दांत, बड़ा पेट और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु, अंकुश और एक खिला हुआ कमल था। श्री गणेश के एकदन्त अवतार ने मदासुर को पराजित करके पाताल भेज दिया और देवताओ को अभय वरदान दिया।  


3. महोदर

जब भगवान कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध किया गया, तब गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के राक्षस को देवताओ के विरुद्ध खड़ा कर दिया। मोहासुर से तंग आकर देवताओ ने श्री गणेश का स्मरण किया तब भगवान गणेश महोदर (यानी बड़े पेट वाले) के रूप में प्रकट हुए। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में उसका अंत करने पहुंचे, तब भगवान नारायण की समझाइश पर मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।


4. लंबोदर 

क्रोधासुर नामक दैत्य ने सूर्य देव की तपस्या कर उनसे ब्रह्माण्ड विजय का वरदान प्राप्त किया। जैसे ही ये बात देवताओ को पता चली सब भयभीत हो गए। क्रोधासुर जैसे ही देवताओ के खिलाफ युद्ध के लिए निकला तब गणेश जी ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया, और उसको अपनी ज्ञान शक्ति से समझाया। क्रोधासुर ने गणेश जी की समझाइश पर अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।


5. विकट

भगवान नारायण द्वारा जालंधर नामक राक्षस के अंत के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, जिसका नाम कामासुर था। कामासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उनसे अजय, अमर अथवा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी बनने का वरदान प्राप्त किया, उसने तीनो लोको में अपना अधिकार कर लिया और बहुत अत्याचार करने लगा। 

अंत श्री गणेश ने विकट रूप में अवतरित हुए और अपनी सवारी मोर में बैठ कर कामासुर की नगरी में चढाई कर दी उन्होंने कामासुर से युद्ध करके उसको पराजित कर दिया। और कामासुर के अत्याचारों से तीनो लोको को मुक्त किया। 


6. गजानन 

लोभासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उनसे तीनो लोको  निर्भय होने का वरदान प्राप्त किया और धरती और स्वर्ग में अपना अधिकार कर लिया। बाद में उसने कैलाश में सदेश भेजा की या तो उससे युद्ध करो या कैलाश खाली करो। तब श्री गणेश ने लोभासुर का संदेश स्वीकार कर गजानन रूप में अवतरित हुए पर युद्ध से पहले ही गुरु शुक्राचार्य की समझाइश पर लोभासुर भगवान गजानन के शरणागत हो गए। 


7. विघ्नराज 

शम्बरासुर के शिष्य ममतासुर ने श्री गणेश की तपस्या कर उनसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी बनने का वरदान प्राप्त किया। तीनो लोको में अपना राज स्थापित करने के बाद उसने सभी देवताओ को बंदी बना दिया और कारागार में डाल दिया। सभी देवताओ ने श्री गणेश की आराधना की अंत श्री गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए, उन्होंने ममतासुर से युद्ध कर उसको पराजित किया, और सभी लोको अथवा देवताओ को ममतासुर से मुक्त करवाया।  


8. धूम्रवर्ण 

गुरु शुक्राचार्य के शिष्य अहंतासुर नामक असुर ने भगवान गणेश की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किये। और उन वरदानो का दुरपयोग कर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने अधीन कर लिया उसके अत्याचारों से तीनो लोको में हाहाकार मच गया। 

देवताओ की पुकार पर भगवान गणेश ने अहंतासुर के अत्याचारों से तीनो लोको की मुक्ति के लिए धूम्रवर्ण का अवतार लिया। उनका रूप विकराल रंग धुंए जैसा था। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण के रुप में गणेश जी ने अहंतासुर को पराजित कर उसको अपनी शरण में लिया। 


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गणेश जी (Ganesh ji) मंत्र 


ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।

किसी भी कार्य के प्रारम्भ में इस मंत्र के जाप से गणेश जी को प्रसन्न करना चाहिए। 


ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।

गणेश जी को प्रसन्न करने का एक मंत्र यह भी है।


ऊँ गं गणपतये नमः ।।

इस मंत्र का जाप करने से गणेश जी बुद्धि प्रदान करते हैं। 


गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।

द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥

विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌।

मंगल कार्यो की पूर्ति और बाधाओं के नाश के लिए गणेश जी के इस मंत्र का जाप करें।


एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

सिद्धि की प्राप्ति हेतु गणेश जी के इस मंत्र का जाप करे। 


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गणपति (Ganpati) के 108 नाम 

बालगणपति, भालचन्द्र, बुद्धिनाथ, धूम्रवर्ण, एकाक्षर, यशस्कर, यशस्विन, योगाधिप, एकदंत, गजकर्ण, गजानन, गजनान, गजवक्र, गजवक्त्र, गणाध्यक्ष, गणपति, गौरीसुत, लंबकर्ण, लंबोदर, महाबल, महागणपति, महेश्वर, मंगलमूर्ति, मूषकवाहन, निदीश्वरम, प्रथमेश्वर, शूपकर्ण, शुभम, सिद्धिदाता, क्षिप्रा, मनोमय, मृत्युंजय, मूढ़ाकरम, मुक्तिदायी, नादप्रतिष्ठित, नमस्तेतु, नंदन, पाषिण, पीतांबर, प्रमोद, पुरुष, रक्त, रुद्रप्रिय, सर्वदेवात्मन, सर्वसिद्धांत, सर्वात्मन, शांभवी, शशिवर्णम, शुभगुणकानन, श्वेता, सिद्धिप्रिय, स्कंदपूर्वज, सुमुख, स्वरुप, तरुण, उद्दण्ड, उमापुत्र, वरगणपति, वरप्रद, वरदविनायक, वीरगणपति, विद्यावारिधि, विघ्नहर, विघ्नहर्ता, विघ्नविनाशन, विघ्नराज, विघ्नराजेन्द्र, विघ्नविनाशाय, विघ्नेश्वर, विकट, विनायक, विश्वमुख, यज्ञकाय, सिद्धिविनायक, सुरेश्वरम, वक्रतुंड, अखूरथ, अलंपत, अमित, अनंतचिदरुपम, अवनीश, अविघ्न, भीम, भूपति, भुवनपति, बुद्धिप्रिय, बुद्धिविधाता, चतुर्भुज, देवदेव, देवांतकनाशकारी, देवव्रत, देवेन्द्राशिक, धार्मिक, दूर्जा, द्वैमातुर, एकदंष्ट्र, ईशानपुत्र, गदाधर, गणाध्यक्षिण, गुणिन, हरिद्र, हेरंब, कपिल, कवीश, कीर्ति, कृपाकर, कृष्णपिंगाक्ष, क्षेमंकरी 



गणपति जी की दो शादियां क्यों हुई थीं?

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गणेश जी तपस्या कर रहे थे, तभी अचानक वहाँ से तुलसी जी गुजरी और गणेश जी को देख कर मोहित हो गयी। तुलसी गणेश जी से विवाह करना चाहती थीं लेकिन गणेश जी ने ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह का प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 

इससे नाराज़ तुलसी जी ने गणेश जी को श्राप दिया की उनके  दो विवाह होंगे। इस पर गणेश जी ने भी तुलसी जी को श्राप दे दिया की तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। इसी वजह से भगवान गणेश की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता है। 


गणपति जी का विवाह कैसे हुआ और किसके साथ?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री गणेश का हाथी का सिर होने के कारण उनसे कोई कन्या विवाह नहीं करना चाहती थी यहाँ बात गणेश जी को बहुत अखरती थी। इसलिए गणपति जी और उनके मूषक ने सभी देवताओ की शादी में विध्न पैदा करना शुरू कर दिया वहाँ किसी न किसी तरह से वो देवताओं की शादी में कुछ गड़बड़ करते रहते थे। 

सभी देवता उनकी इस हरकत से परेशान होकर ब्रह्मा जी के पास गए और उनको अपनी समस्या बताई तब ब्रह्मा जी ने अपनी रचनातमक शक्ति ने दो कन्याओ रिद्धी और सिद्धी की रचना की। इसके बाद गणपति जी का उनसे विवाह हुआ, जिससे उनके दो पुत्र शुभ और लाभ पैदा हुए।


गणपति जी का विसर्जन क्यों किया जाता है?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री गणेश की दस दिन की पूजा करके 11वे दिन उनको विसर्जित कर दिया जाता है। इसका कारण यहाँ मानते है की भगवान दस दिन की पूजा के बाद कैलाश लौट जाते हैं, इस कार्य में कोई बाधा ना आये इसलिए उनकी मूर्ति को विसर्जित किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार गणपति जी अपने सभी भक्तो के दुःख-दर्द को अपने साथ ले जाते है। 


गणेश चतुर्थी कब मनाई जाती है और क्यों?

(गणेश चतुर्थी 2023 - मंगलवार, 19 सितम्बर)

गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए लोग उनके जन्म दिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में मानते है।


गणपति बाप्पा मोरिया क्यों कहा जाता है?

(गणपति बप्पा मोरया, मंगळमूर्ती मोरया) यहा नारे हर व्यक्ति लगाता है पर बहुत कम लोग इसका मतलब जानते है, कथाओं के अनुसार 14वीं सदी में गणपति के सबसे बड़े भक्त हुए जिनका नाम मोरिया गोसावी था। ये कर्नाटक के शालिग्राम गांव के निवासी थे, कर्नाटक में मोरिया की भक्ति को पागलपन कहा जाता था, वह कर्नाटक छोड़ पुणे में चिंचवाड़ा में रहने लगे। 

मान्यताओं के अनुसार मोरिया गोसावी ने अपनी भक्ति से गणपति को प्रसन्न कर सिद्धी हासिल कर ली, मोरिया जी के बेटे ने चिंतामणी में एक मंदिर बनवाया जहां उसके पिता ने सिद्धी की थी। मोरिया जी ने सिद्धी विनायक में जाकर भी तपस्या की और मयुरेश्वर में भी, गणपति भगवान उसकी सिद्धी से बहुत प्रसन्न थे और इस कारण ही मोरिया जी की एक इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने हामी भर दी। 

मोरिया की इकलौती इच्छा थी कि उसका नाम गणपति के परम भक्त के तौर पर दुनिया में प्रसिद्ध हो जाए और इसी वजह से मोरिया शब्द भगवान गणेश के नाम से हमेशा के लिए जुड़ गया। 


गणेश जी के प्रमुख 15 मंदिर?

  • सिद्धि विनायक गणेश मंदिर, मुंबई 
  • खजराना गणेश मंदिर, इंदौर
  • रणथंबौर गणेश मंदिर, राजस्‍थान
  • अष्टविनायक मंदिर, महाराष्ट्र
  • मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर
  • श्रीमंत दग्‍दूशेठ हलवाई मंदिर, पुणे
  • रॉक फोर्ट उच्ची पिल्लयार मंदिर, तमिलनाडु
  • गणपतिपुले मंदिर, रत्‍नागिरी
  • गणेश टोक मंदिर, गंगटोक
  • मनकुला विनायगर मंदिर, पुडुचेरी
  • मधुर महागणपति मंदिर, केरल
  • चिंतामन गणपति मंदिर, उज्जैन
  • कनिपकम विनायक मंदिर, चित्तूर
  • श्री डोडा गणपति मंदिर, बेंगलुरु
  • डोडीताल, उत्तराखंड -उत्तरकाशी जिले के डोडीताल इलाके को गणेशजी का जन्म स्थान भी माना जाता है।



अंतिम शब्द 

इस लेख भगवान गणेश (Lord Ganesha) के बारे में क्या आप यहा बाते जानते है? में लिखी सारी जानकारी विभिन्न माध्यमों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता/पाठक इसे महज सूचना समझकर ही लें। धन्यवाद।