हिन्दू धर्म में भैरव को शिव जी का पांचवा रूप माना गया है। इनका रूप इतना भयानक होता है की काल भी इनसे डरता है इसलिए इनको काल भैरव भी कहा गया है। ग्रंथो में काल भैरव को दिशाओ के रक्षक के रूप में बताया गया है।


शिव पुराण के अनुसार कैसे हुआ भगवान भैरव का जन्म


एक बार सभी ऋषि मुनियों और देवताओ के बीच यह बेहस छिड़ गयी की सबसे सर्वश्रेष्ठ भगवान कौन है और यह बहस में विवाद हो गया की ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन है। 

एक तरफ पांच सर वाले ब्रह्मा जी को मानने वाले दक्ष संस्कृति के मुनियो ने ब्रह्मा जी को श्रेष्ट बताया क्योंकि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। और दूसरी तरफ वैष्णो पंत का मानना था की विष्णु भगवान इस सृष्टि के पालन हार है और सर्वश्रेष्ठ व्ही है। 

इसके बाद दोनों पक्षों में भयंकर विवाद छिड़ गया। शिव पुराण के अनुसार बताया गया है की इस विवाद को सुलझाने के लिए चारो वेदो को बुलाया गया। चारो वेद वह उपस्थित हुए वेदो ने बताया जिसके अंदर समस्त भूत निहित है जिसको परम तत्त्व कहा जाता है व्हे ही एक मांत्र शिव है और शिव ही सर्वश्रेष्ठ है। 

यह सुन कर ब्रह्मा विष्णु वेदो से बोले ये तुम्हारी अज्ञानता है कैलाश में रहने वाला कैलाश पति नग्न रहने वाला अपने शरीर में भष्म लगाने वाला सर्वश्रेष्ठ कैसे हो सकता है। दोनों के इस विवाद के चलते वहा पर शिव जी प्रकट हुए। 

शिव जी को देख ब्रह्मा जी बोले हे चंद्र शंख में तुम्हे जानता हु तुम मेरे ही सर से उतपन्न हुए हो रुदन के कारण मेने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा था हे पुत्र तुम मेरी शरण में आजाओ। ब्रह्मा जी के ये अहंकारी शब्द सुन शिव जी को क्रोध आ गया उसी वक़्त भगवान ने अपने क्रोध से भैरव को उतपन्न किया। 

और आदेश दिया की इस सृष्टि में अहंकार की कोई जरूरत नहीं है इसलिए ब्रह्मा जी का अहंकार रुपी पांचवा सर काट दो और उन्हें अहंकार मुक्त कर दो। यह सुन काल भैरव ने भगवान शिव के आदेश अनुसार अपने नाखून से ब्रह्मा जी का पांचवा सर काट कर अलग कर दिया। 

लेकिन भैरव के इस काम से उनके ऊपर ब्रह्महत्या का पाप लग गया और ब्रह्म दोष के चलते हत्या रुपी डरावनी आकृति उनके पीछे लग गयी इससे बचने के लिए भैरव यह से वह तीनो लोको में भटकने लगे अंत में उन्होंने अपने इष्ट महादेव का ध्यान किया और डरावनी हत्या रुपी आकृति से मुक्त होने के लिए मदद मांगी। 

तब महादेव ने उन्हें बताया की वो उनकी प्रिय नगरी वारणशी में जाएँ और उस स्थान को अपना निवास स्थान बनाये क्योंकि वह एक पवित्र स्थान है वह पे जाने मात्र से देव तथा मनुष्य दोनों के पाप खत्म हो जाते है। भैरव जी ने ऐसा ही किया और वह जाते ही हत्या रुपी आकृति गायब हो गयी और ब्रह्महत्या से वह मुक्त हो गए। 

तब से भगवान भैरव काशी नगरी के आधिपति है वह भक्तो के पाप भषण (नष्ट) करते है इसलिए उनका नाम पाप भषण भी है यानी की पाप को नष्ट करने वाला। वंहा जितने भी पापी है उनको दंड देते रहते है यही उनका कार्य है।इस तरीके से ब्रह्मा, विष्णु विवाद में भैरव की उतपति हुई। 


Who is Lord Bhairav



भगवान भैरव के 8 मुख्य रूप


1. कपाल भैरव 

इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है, इस रूप की पूजा करने से कानूनी कारवाही समाप्त हो जाती है, अटके हुए काम पूरे होते है।

2. क्रोध भैरव

इस रूप में भगवान का शरीर गहरे नीले रंग का है, उनकी तीन आंखे है उनकी सवारी गरूड़ है, इनकी पूजा करने से सभी परेशानिया दूर होती है, और बुरे वक़्त में लड़ने की छमता आती है।   

3. असितांग भैरव

इस रूप में उनके गले सफ़ेद कपालो की माला है, और हाथ में भी एक कपाल धारण किया हुआ है, इनकी तीन आंखे है, इनकी सवारी हंस है, इनकी पूजा करने से मनुष्य में कलात्मक छमताये बढ़ती है।       
       

4. चंद्र भैरव

इस रूप में भगवान की तीन आंखे है, इनकी सवारी मोर है, इनकी पूजा करने से दुश्मनो पर विजय मिलती है, और हर बुरे समय में लड़ने की ताकत आती है। 

5. गुरु भैरव

इस रूप में भगवान नग्न है, और इनकी सवारी बेल है, इनकी पूजा करने से विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है। 

6. संहार भैरव 

इस रूप में भगवान का शरीर नग्न अथवा लाल है, और उनकी तीन आंखे 8 भुजाये है, इनकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते है।   

7. उन्मत्त भैरव 

यह रूप भगवान का शांत स्वभाव का प्रतीक है, इनकी सवारी घोडा है, और इनका रंग हल्का पीला है, इनकी पूजा करने से इंसान की सभी नकारत्मक और बुराई ख़तम हो जाती है। 

8 भीषण भैरव

इनकी सवारी शेर है, इनकी पूजा करने से सभी बुरी आत्माये भूतो से छुटकारा मिलता है।    



भैरव आराधना के 5 दिव्या चमत्कारी मंत्र 


 ॐ भयहरणं च भैरव:।

ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्‍।

 ॐ कालभैरवाय नम:।

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।

ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।