हर महीने 2 चतुर्थी तिथि आती है एक शुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष को विनायकी चतुर्थी भी कहा जाता है और कृष्ण पक्ष को संकष्टी चतुर्थी। 

लेकिन माघ मास में आने वाली कृष्ण पक्ष का अलग महत्व माना गया है क्योंकि इस दिन हिन्दू धर्म के लोग सकट चौथ, संकटा चौथ, तिलकुट चौथ आदि नाम का व्रत/त्यौहार मनाते है।
 
इस लेख के माध्यम से हम आपको इस व्रत/त्यौहार को क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे की कथा एवं विधि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करंगे। 


सकट चौथ व्रत कथा


सकट चौथ क्यों मनाया जाता है

मान्यता है की सकट चौथ के दिन माँ अपने बच्चो की लम्बी उम्र, उन्नति के लिए भगवान श्री गणेश के व्रत रखती है। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है की इस दिन व्रत रखने से भगवान श्री गणेश उनके और उनके बच्चो के सभी कष्ट हर लेते है। 


सकट चौथ मनाने के पीछे की कथा 

सकट चौथ मनाने के पीछे अनेको सस्त्रो में अनेको कथाए मिलती है, पर जो सबसे ज्यादा प्रचलित है ऐसी दो कथाए आपको बताते है - 

(1)  एक बार भगवान कार्तिकेय और बाल गणेश में चर्चा हुई की हम दोनों में सबसे श्रेष्ट कौन है। कार्तिकेय बोले में बड़ा हु इसलिए में ही श्रेष्ट हु, इसपर गणेश जी बोले में माता पिता का प्रिय हु इसलिए में श्रेष्ट हु।  

इन बातो के चलते दोनों भाइयो में विवाद हो गया। इस बात का हल निकालने के लिए दोनों में एक प्रतियोगिता हुई की जो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा के पहले आ जाएगा वो श्रेष्ट कहलाएगा। 

दोनों ने हामी भरी और चल पड़े। भगवान कार्तिकेय की सवारी मोर होने के कारण वो जल्दी चल दिए लेकिन बाल गणेश अपने मूषक में बैठ धीरे-धीरे चलने लगे और हार के बारे में सोचने लगे क्योंकि उनका वजन भी बहुत था और उनकी सवारी चूहा बहुत धीमा था। 

चलते-चलते उन्हें रास्ते में नारद जी मिल गए और बोले की भगवन आप पूरी ज़िन्दगी भी लगा देंगे तो भी नहीं कर पाएंगे। यह बात सुन बाल गणेश बड़े उदास हुए और नारद जी से हल पूछने की कामना वियक्त की। 

तब नारद जी ने उन्हें कहा की जहा आपके माता-पिता विराजमान है उस जगह के सात चक्कर लगा लीजिये ये बात सुन बाल गणेश गए और माता-पिता की सात प्रक्रिमा कर ली।

इसके चलते जहा-जहा भगवान कार्तिकेय जाते आगे-आगे उन्हें चूहे के कदमो निशान पहले से ही मिलते जब तक वह वापस आये तो देखा बाल गणेश भगवान शिव की गोद में बैठे है। 

भगवान शिव ने बाल गणेश को वरदान स्वरूप आशीर्वाद दिया की जैसे तुम हमे प्रिय हो, वैसे ही इस दिन जो भी माँ अपने बच्चे के लिए तुम्हारा व्रत रखेगी उस माँ का बालक दृग आयु होगा और हमे तुम्हे भी उतना ही प्रिय होगा।

 

(2)  राजा हरीश चंद्र महाराज के नगर में एक ऋषि शर्मा नाम का एक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था उसकी एक संतान होने के बाद उसकी आकस्मिक ढंग से मृत्यु हो गयी। उसकी पत्नी अपना और अपने बच्चे का पालन भिक्षा मांग के किया करती थी। 

उस माँ ने अपने बच्चे को सदैव ये सिखाया हुआ था की भगवान गणेश विघ्न  सख्त दूर करने वाले तो जब भी तुम्हारे ऊपर कोई भी मुसीबत आये तो हमेशा गणेश भगवान की उपासना करने लग जाना। 

फिर उस बच्चे ने अपनी माँ से पूछा की माँ गणेश भगवान दिखते कैसे है तो, माँ ने गौबर/मिट्टी के एक छोटे से गणेश महाराज बनाए और अपने बच्चे के गले में बांद दिए। जब भी बच्चे को कोई समस्या होती वह गणेश भगवान को याद करने लग जाता। 

उस गाओ में एक कुमार(मिट्टी के बर्तन बनाने वाला) रहता था। जिस आवा में वो आग लगा कर अपने मिट्टी के बर्तन पकाता था उसमे आग नहीं लग रही थी, लगने के कुछ समय बाद बुझ जाया करती थी और बर्तन कच्चे रह जाते थे।     

इस समस्या के समाधान के लिए वह कुमार गाओ के तांत्रिक के पास गया और उस तांत्रिक ने कुमार से कहा की यदि तुम किसी बच्चे को उस आवा में डाल के जलाओ/बलि दो तो तुम्हारा आवा फिर से सही हो जाएगा। 

यह सोच कुमार ने उस माँ के बच्चे को उठा लिया और आवा में डाल कर आग लगा दी उस दिन सकट चौथ का दिन था माँ ने अपने बच्चे के लिए भगवान गणेश का व्रत रखा हुआ था जैसे ही श्याम को माँ पूजा खत्म कर अपने बच्चे को प्रशाद तिलक लगाने के लिए ढूढ़ने लगी। उसने देखा उसका बालक गायब है। 

पूरी रात घबरा कर वहा माँ गणेश भगवान से अपने बच्चे की सलामती की प्राथना करने लगी और बालक को भी पता था की माँ ने उसे बताया है की जब भी तुम्हारे ऊपर खतरा हो भगवान गणेश से प्राथना करने लग जाओ। बच्चा अपनी माँ की बात को याद में रख कर गले में बंधे हुए बाल गणेश की आराधना करने लगा। 

जब कुमार सुबह आया तो वह देख हैरान रहे गया क्योंकि बच्चा सभी बर्तनो के ऊपर बैठ भगवान गणेश के मंत्र ऊं गं गणपतये नमः। का जाप कर उन्हें याद कर रहा था। साथ ही आवा में आग भी लगी थी और कुमार के बर्तन भी पक चुके थे।   

यह बात जब राजा हरीश चंद्र को पता चली तो उन्होंने पूरे नगर में घोषणा करवा दी की जो भी कोई सकट चौथ के दिन भगवान गणेश का व्रत रखेगा उसकी संतान को कभी कोई हानि नहीं होगी। 

हिन्दू धर्म में मान्यता है की सतयुग से ये प्रथा आज तक चली आ रही है और माता अपनी संतान के उज्जवल भविष्य और रक्षा की कामना के लिए श्री गणेश का व्रत रखती है। 


Sankashti Chaturthi date 2022


सकट चौथ मनाने की विधि। 

सकट चौथ मनाने के लिए स्त्रियां कुछ बातो को ध्यान में रखे - 

  • स्त्रियां सुबह जल्दी उठ अपने घर के काम से मुक्त होकर स्नान करके अच्छे वस्त्र धारण करे। उसके बाद सुबह की पूजा में भगवान गणेश की आरधना करे और व्रत का संकल्प ले। 
  • श्याम की पूजा के समय एक चौकी ले उसमे लाल कपड़ा बिछा कर भगवान गणेश और सकट माता को उसमे स्थापित कर उनकी पूजा करे। 
  • पूजा में एक लोटे में जल ले, फूल ले, घी से दीपक जलाए, फल चढ़ाये, गुड़ और तिल को कुट कर उसका प्रशाद बनाए या फिर तिल के लड्डू चढ़ाए, चावल मोली से तिलक लगाए और गणेश भगवान और सकट माता की पूजा करे। 
  • इसके बाद चाँद निकलने तक श्री गणेश और सकट माता की कथा सुने या पढ़े। 
  • चाँद निकलने के बाद लोटे से चंद्र देव को जल चढ़ाए और अपना व्रत पूर्ण कर अपने परिवार को तिलक लगाकर प्रशाद ग्रहण करे।   

Sakat Chaturthi सकट चौथ व्रत/पूजा तिथि 

सकट चौथ तिथि - 10 जनवरी 2023 12 बजकर 9 मिनट पर प्रारंभ और 11 जनवरी दोपहर 02 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी।