हर महीने 2 एकादशी होती है साल में 24 उन सब एकादशी में षटतिला एकादशी को हिन्दू धर्म के शास्त्रों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। 

यह एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। माना जाता है की इस दिन दान पुण्य करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो चलिए जानते इस व्रत की कुछ महत्पूर्ण बातो को। 

षटतिला एकादशी 2022 मुहूर्त


षटतिला एकादशी क्यों मनाया जाता है? 

यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है, इस दिन तिल के 6 प्रयोग के कारण ही इसे षटतिला एकादशी नाम दिया गया है। 

पद्म पुराण में वर्णित है कि जो भी व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन व्रत करते हैं, साथ ही तर्पण, दान और विधि-विधान से पूजा करते हैं, उन्‍हें सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पापों से मुक्त होते है।

छह प्रकार से तिल के प्रयोग में आप तिल का उबटन बनाकर लगा सकते है, स्नान करते समय पानी में तिल डाल ले, तिल से हवन में आहुति दे, तिल को पानी में डाल कर उसका तर्पण करे, बाकी वस्तु के साथ तिल को अवष्य दान करे, खाने में तिल का प्रयोग करे। 


षटतिला एकादशी 2023 मुहूर्त

एकादशी तिथि शुरू - 06:05 PM on Jan 17, 2023
एकादशी तिथि समाप्त - 04:03 PM on Jan 18, 2023


षटतिला एकादशी व्रत विधि 

सबसे पहले तो एकादशी वाले दिन सुबह उठ के तिल को पानी में डाल कर स्नान कर ले। इसके बाद अपने मंदिर की साफ़ सफाई कर के भगवान नारायण के समक्ष दीपक जलाय उनकी आरती करे और व्रत का संकल्प ले। 

इसके बाद भगवान के लिए तिल का प्रसाद बनाए तिल से कुछ मीठा बनाए और भगवान को धुप, पुष्प, फल, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, नैवेद्य, तुलसी, पंचामृत के साथ अर्पित करे और षटतिला एकादशी की कथा पढ़े। 

उसके बाद श्याम को भगवान की आरती, भजन कीर्तन, पाठ और जागरण करे। व्रत वाले दिन अगर पानी पिए तो उसमे तिल डाल कर ही पिए। सुबह होते ही स्नान कर किसी असहाय या किसी ब्राह्मण को भोजन कराए उसको अपनी क्षमता के अनुसार दान दे और भगवान का नाम लेकर अपना व्रत पूर्ण करे।  



षटतिला एकादशी कथा

पौराणिक काल में भगवान नारायण की एक विधवा ब्राह्मणी भक्त हुआ करती थी। जो भगवान नारायण पर बहुत विश्वाश रखती थी और उनकी सच्ची श्रद्धा भाव से भक्ति भी किया करती थी। 

एक बार उस ब्राह्मणी ने भगवान के एक महीने तक उपवास किये और पूरी भक्ति से पूजा पाठ उपासना की। उसके इन कर्मो से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया था लेकिन उस ब्राह्मणी ने कभी किसी को अन्न दान नहीं किया था। 

यह देख एक दिन भगवान नारायण उसकी परीक्षा लेने खुद भिक्षु के रूप में भिक्षा लेने पहुंचे। उस ब्राह्मणी ने भगवान के भिक्षु रूप को देखा और पुछा आप कौन है और कहा से आये है। यह सुन उस भिक्षु ने ब्राह्मणी को कोई उत्तर नहीं दिया। 

इस व्यवहार के कारण ब्राह्मणी ने गुस्से में मिट्टी का एक छोटा टीला उठाया और भिक्षु के भिक्षा पात्र में डाल दिया यह देख भगवान वह से बिना कुछ बोले अपने धाम में वापस आ गए और उस मिट्टी से ब्राह्मणी के लिए अपने धाम में एक सुंदर भवन बनाया। 

कुछ समय के बाद जब वह ब्राह्मणी अपना देह त्याग कर भगवान विष्णु के धाम में आयी तो उसने देखा की उसका भवन बहुत सुंदर था उसमे हर प्रकार की सुख सविधा मौजूद थी परन्तु भोजन का एक दाना भी नहीं था। 

यह देख वो ब्राह्मणी भगवान के पास गयी और भगवान से बोली की हे प्रभु मेने आपकी भक्ति में कोई कमी नहीं की फिर मेरे भवन में अन्न का एक भी दाना क्यों नहीं है। 

यह बात सुन भगवान विष्णु ने उस ब्राह्मणी को वापस अपने भवन में जाने के लिए कहा और बोले की कुछ समय बाद तुम्हारे पास कुछ देव कन्या आएंगी और जब वो आये तो तुम अपना दरवाज़ा मत खोलना पहले उनसे षटतिला एकादशी की कथा सुनना। 

ब्राह्मणी ने ऐसा ही किया जैसे ही देव कन्या आयी उसने दरवाज़ा नहीं खोला और उनसे षटतिला एकादशी की कथा को कहा एक देव कन्या ने उसकी बात स्वीकार की और षटतिला एकादशी की कथा सुनाई। 

देव कन्या से षटतिला एकादशी का वर्णन सुन कर उस ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी व्रत का पूरी तरह से पालन किया इसके चलते उसके भवन में अन्न, धनं और धान्य की प्राप्ति हुई। 

इसके बाद उस ब्राह्मणी ने भगवान को प्रणाम कर अपनी गलती की माफ़ी मांगी। यह देख भगवान नारायण बोलते है जो इंसान भौतिक इच्छाओ के साथ एकादशी का व्रत करता है उसको वास्तविक फल नहीं प्राप्त होता।

इसलिए हर मनुष्य को स्वार्थ हीन भाव से इस एकादशी का पालन करना चाहिए और अपनी छमता अनुसार दान-धर्म करना चाहिए।