नमस्कार, दोस्तों आज हम उत्तराखंड के उन मंदिरो अथवा उनके इतिहास के बारे में बताएंगे जो काफी प्रसिद्ध, प्राचीन एवं सुन्दर दर्शय से परिपूर्ण है। अगर आप most popular temple of uttarakhand के बारे में जानकारी जानना चाहते है तो इस लेख को अंत तक पढियेगा।


Uttarakhand के प्रसिद्ध Temple in Hindi

उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है क्युकी यहाँ पर अनेको देवी देवताओ के मंदिर है आपको बता दे की गणेश भगवान का जनम स्थल से लेकर, भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह स्थल भी यही मौजूद है, और अनेको ऐसे सिद्धपीठ है जिनका उल्लेख हमारे ग्रंथो पुराणों में किया गया है। इस लेख में हम आपको उत्तराखंड के 25 प्रसिद्ध मंदिर के बारे में बताने जा रहे है। 


1. नंदा देवी मंदिर 

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित नंदा देवी का मंदिर प्रमुख मंदिरों में से एक है। नंदा देवी भगवान शिव की पत्नी और दक्ष प्रजापति की पुत्री है। नंदा देवी माँ दुर्गा का रूप है इसलिए सभी कुमाउनी और गढ़वाली लोग उन्हें पर्वतांचल की पुत्री भी मानते है। माता का मंदिर समुन्द्रतल से 7816 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, 

इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के राजाओ ने मिलकर किया था और यहाँ उनकी ईष्ट देवी है। पत्थरो का मुकुट और कलाकिर्ति इस मंदिर की शोभा बढ़ाती है, पर्यटकों के नजरिये से भी यहाँ मंदिर काफी लोकप्रिय है। 


2. चितई गोलू देवता मंदिर 

अल्मोड़ा जिले में स्थित गोलू देवता मंदिर जिसमे गोलू देवता घोड़े पे सवार धनुष बाण लिए प्रतिमा के रूप में है, इन्हे चितई ग्वेल भी कहा जाता है। इनको न्याय का देवता माना जाता है, जिनको न्याय नहीं मिलता वहे लोग स्टाम्प पेपर में अपने न्याय के लिए गोलू देवता में हाज़री लगाते है 

और मनोकामना पूर्ण होने के बाद घंटी चढ़ाते है, भक्तो का भी यही मानना है की गोलू देवता न्याय करते ही है, इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको अनगिनत घंटिया नज़र आने लगती है। 

यहाँ पर हर कोने में इतनी घंटियां है की उनकी संख्या के बारे में जानकारी मंदिर के लोगो के पास भी नहीं है। और यही इस बात का प्रमाण है। कहा जाता है की इनका मंदिर चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में बनवाया था। 

एक और मान्यता के अनुसार कहा जाता है की गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर के एक जनरल थे और युद्ध के दौरान वह वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्‍थापना की गई।


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3. मनसा देवी मंदिर

हरिद्वार जिले में स्थित मनसा देवी मंदिर जिसमे माता मनसा अपने भक्तो की हर मनोकामना पूर्ण करती है। मान्यताओं के अनुसार मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री अथवा नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है। 

एक और मान्यता के अनुसार मां मनसा शक्ति का ही एक रूप है जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी जो उनके मन से अवतरित हुई थी और मनसा कहलाई। इनको विष की देवी के रूप में भी पूजा जाता है, 

इस मंदिर में भक्त माँ से अपनी मनसा की पूर्ति के लिए प्र्थना करते है और इसी मंदिर में स्थित पेड की डाल पर धागा बाँधते है और जब उनकी मनसा पूर्ण हो जाती है तो फिर से एक बार और आकर भक्त वह धागा निकाल देते है।  


4. चंडी देवी मंदिर

चंडी देवी मंदिर हरिद्वार में बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। यह नील पर्वत पर स्थित 52 शक्तिपीठों में से एक चंडी देवी को समर्पित है। इनको चंडिका नाम से भी जाना जाता है। 

इस मंदिर का निर्माण 1929 में कश्मीर के राजा सुचात सिंह ने अपने शासनकाल में करवाया था लेकिन मंदिर में स्थित चंडी देवी की मुख्य मूर्ति की स्थापना 8वी शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। 


5. कार्तिक स्वामी मंदिर

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में कनक चौरी गाँव से 3 कि.मी. की दुरी पर क्रोध पर्वत पर समुद्र की सतह से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। उत्तराखंड में यहाँ एक मात्र मंदिर है जो भगवान शिव के जयेष्ठ पुत्र भगवान कार्तिके को समर्पित है। 

ऐसा माना जाता है की एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रो को कहा की जो पहले ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाके आएगा उसको प्रथम पूजनीय का दर्जा मिलेगा। यहा सुनते ही भगवान कार्तिके अपनी सवारी में निकल गए और श्री गणेश ने कैलाश में ही अपने माता पिता के चक्कर लगा दिए इस बात से प्रसन्न होकर उन्हें प्रथम पूजनीय का वरदान प्राप्त हुआ। 

पर जब यहा बात नारद जी दुवारा भगवान कार्तिके को बताई गयी तो वो क्रोधित होकर हिमालय में तपस्या के लिए चले गए। इसी मंदिर के स्थान पर भगवान कार्तिके ने वर्षो तपस्या की। 


6. नैना देवी मंदिर

नैनीताल जिले में नैनी झील के किनारे मल्लीताल के पास नैना देवी माता का भव्य मंदिर स्थित है। यहा मंदिर 52 शक्तिपीठ में से एक माना जाता है। कहा जाता है की यहाँ माता की एक नैन गिरा था और दूसरा नैन हिमाचल के बिलासपुर में। इस मंदिर के अंदर नैना देवी मां के दो नेत्र बने हुए हैं। माना जाता है की नेत्र से जुड़ी समस्याएं यहां ठीक होती है।


7. यमुनोत्री मंदिर

यमुनोत्री मंदिर उत्तरकाशी जिले में, हिमालय क्षेत्र के, पश्चिम में, समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर कालिंद पर्वत में स्थित है। इस मंदिर में माता यमुना अपने बड़े भाई यम के साथ काले संगमरमर की प्रतिमा में विराजमान है। 

मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने करवाया था। बाद में इसका पुनः निर्माण 19वी सदी में जयपुर की महारानी गुलेरिया ने करवाया।


8. तुंगनाथ मंदिर

यहां मंदिर पंच केदार में से एक माना जाता है। खुबसूरत हिमालयों की चोटी में तुंगनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में समुद्र तल से 3680 मीटर की उंचाई पर स्थीत है। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार से महादेव पाण्डवों से रुष्ट थे उनको प्रसन्न करने के लिए पाण्डवों ने यहाँ मंदिर का निर्माण कर तपस्या की। इसके अलावा यहा भी मान्यता है की शिव जी को पाने के लिए माता पार्वती ने यहाँ पर तपस्या की थी। 


9. बद्रीनाथ मंदिर 

बद्रीनाथ मंदिर चमोली जिले में समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वी सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है बद्रीनाथ मंदिर को धरती का वैकुण्ठ भी कहा जाता है। 

मान्यता के अनुसार भगवान नारायण अपने ध्यान-योग के लिए एक स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के पास शिवभूमि का स्थान बहुत पसंद आ गया। उन्होंने नीलकंठ पर्वत (वर्तमान चरणपादुका स्थल) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे। 

यहा देख माता पार्वती और शिव जी उस बालक के पास गए और उन्होंने उस बालक से रोने की वजह पूछी तब उस बालक ने ध्यान-योग के लिए वह जगह जो की शिव भूमि(केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित थी उनसे मांग ली। इस तरह से रूप बदल कर भगवान नारायण ने महादेव-पार्वती से शिवभूमि को अपने ध्यान-योग करने हेतु प्राप्त किया। 


10. सुरकंडा देवी मंदिर

सुरकंडा देवी मंदिर जिला टिहरी गढ़वाल के पश्चिमी भाग में समुद्र तल से 2750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। माँ सुरकंडा माता सती के 52 शक्तिपीठ में से एक रूप है। इस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो आज के समय में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध है। 

नवरात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर काफी मात्रा में यहाँ श्रद्धालु आते है उनका मानना है की इस दिन देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है। 




11. गोपीनाथ मंदिर

गोपीनाथ मंदिर चमोली जिले के गोपेश्वर नामक गाँव में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। गोपीनाथ मंदिर कत्युरी शासकों द्वारा 9वीं शताब्दी में बनवाया गया था। यहाँ मंदिर केदारनाथ के बाद सबसे प्राचीन मंदिरो की श्रेणी में आता है। 

इस मंदिर में एक निराला गुंबद और 24 दरवाजे है। यहाँ मंदिर भगवान शिव जी की तपोस्थली माना जाता है यह पर भगवान ने काफी वर्षो तक तपस्या की थी। कहा जाता है की इसी स्थान पर भगवान शंकर ने कामदेव को मारने के लिए त्रिसूल फेका था जो यहाँ गड गया क्युकी कामदेव ने भगवान शिव को तपस्या से जगाने के लिए इंद्र के कहे अनुसार उनपे काम बांड छोड़े थे।


12. चन्द्रबदनी मंदिर

टिहरी जिले में स्थित 8000 फुट की उचाई पर चंद्रकूट पर्वत में माँ चन्द्रबदनी मंदिर 52 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। यहाँ मंदिर भुवनेश्वरी सिद्धपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इन सभी मंदिरों की कहानी एक ही है। ये सभी 52 शक्तिपीठ मंदिर माता सती और भगवान शिव से जुड़े हुए हैं। 

इस मंदिर में माता की कोई प्रतिमा नहीं है यहाँ पर केवल श्रीयंत्र विराजमान है जिसको पुजारी भी आँखे निचे कर के कपड़ा डालता है पुजारी का कहना है अगर वो ऐसा नहीं करंगे तो उनकी आँखे चुंधिया जाएँगी। माना जाता है की इस मंदिर की स्थापना श्रीयंत्र से प्रभावित होकर गुरु शंकराचार्य ने की थी। 


13. लाखामंडल मंदिर

देहरादून जिले के लाखामंडल गाँव के पास लाखामंडल मंदिर स्थित है, जिसको पुरातन शिव मंदिर भी कहा जाता है, शिव और पार्वती को समर्पित यह मंदिर पांडवकालीन बताया जाता है। यहाँ पर चित्रेश्वर नाम से एक पाण्डव गुफा भी मौजूद है। 

इस मंदिर की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की जब पांडव महाभारत के युद्ध के बाद हिमालय आए तो उन्होंने इस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया और यहाँ पर एक लाख शिवलिंगों की स्थापना की कहते हैं कि लाखा का मतलब है लाख और मंडल का अर्थ लिंग। 

यहाँ आपको अनगिनत शिवलिंग तथा मुर्तिया मिल जाएंगी यहाँ पर सभी देवताओ के अलावा पांचो पांडव की मुर्तिया भी मौजूद है। 


14. देवलगढ़ मंदिर 

देवलगढ़ एक पहाड़ी शहर है जो पौड़ी जिले में स्थित है। यहाँ अपने प्राचीन को दिव्य मंदिरो के समुह के लिए प्रशिद्ध है। जिसमे से माँ राजेश्वरी का मंदिर और मां गौरजा देवी मंदिर काफी प्रसिद्ध है ये अपनी प्राचिन्न कला के कारण हमेशा से ही लोगो के आकर्षण का केंद्र रहा है। 




15. महासू देवता मंदिर

महासू देवता मंदिर जिला देहरादून चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के किनारे में स्थित है। कहा जाता है की यहाँ मंदिर 9वी शताब्दी में बनवाया गया था। यह मंदिर वास्तुकलाकारो द्वारा मिश्रित शैली से बड़ी सुंदर तरिके से बनवाया गया है। 

माना जाता है की महासू देवता भगवान शिव के ही अवतार है, महासू देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है बासिक महासू, पबासिक महासू, बौठा महासू और चालदा महासू, इस मंदिर के मुख्य हिस्से में भक्तो का जाना मना है। केवल मंदिर का पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है यहां हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो दशकों से जल रही है।


16. बैजनाथ मंदिर

बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील में गोमती नदी के किनारे बैजनाथ नगर है जहा बैजनाथ मंदिर स्थित है यहाँ मंदिर करीबन 1000 साल पुराना है। यहाँ मंदिर कत्युरी राजा द्वारा विशाल पाषण शिलाओं से बनाया गया है। ऐसा माना जाता है कि शिव और पार्वती ने गोमती व गरुड़ गंगा नदी के संगम पर विवाह रचाया था। 

बैजनाथ को पहले कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था जो कि 13वीं शताब्दी में कत्यूरी वंश की राजधानी हुआ करती थी। इस मंदिर में  भगवान शिव के अलावा गणेश, पार्वती, चंदिका, कुबेर, सूर्य और ब्रह्मा की मूर्तियों है जो की कत्युरी राजा द्वारा बनवायी गयी थी।  


17. जागेश्वर धाम मंदिर 

अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम मंदिर भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। यहाँ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है, इसको योगेश्वर भी कहा जाता है। मान्यता है की यहा प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई। 

यहां 124 बड़े और छोटे मंदिर हैं जिसमे 4-5 मंदिर प्रमुख है जिनमे विधि के अनुसार पूजा होती है जागेश्वर धाम में हिन्दुओं के सभी बड़े देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इतिहासकार मानते हैं कि इन्हें कत्यूरी और चंद शासकों ने बनवाया था।

लेकिन मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था उन्होंने ही सर्वप्रथम इन मंदिरों की स्थापना की थी। एक और मान्यता के अनुसार लोग मानते है कि मंदिरों को पांडवों द्वारा बनाया गया था।


18. त्रियुगीनारायण मंदिर

भगवान विष्णु को समर्पित यह शानदार मंदिर, त्रिजुगीनरायण गांव जिला रुद्रप्रयाग में स्थित है। त्रियुगिनरायण पौराणिक हिमवत की राजधानी थी जहां भगवान शिव ने सतयुग में माता पार्वती से विवाह किया था। जिस हवन कुंड में महादेव ने माता पार्वती के साथ सात फेरे लिए थे। 

वह प्रज्वलित अग्नि तीन युगों से जल रही है इसलिए इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी अग्नि जो तीन युगों से जल रही है। विवाह से पहले यहाँ सभी देवताओ ने स्नान भी किया इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते है। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। 

जो भक्त यहाँ आते है वो प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीर्वाद से हमेशा मंगलमय बना रहे। 




19. बालेश्वर मंदिर

चम्पावत जिले में स्थित बालेश्वर मंदिर 12वी शताब्दी का एक प्राचीन मंदिर है जिसको चन्द शासकों ने बनवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी सुंदर और प्रभावी है। इसके अलावा यहां 2 और मंदिर है जो रत्नेश्वर तथा चम्पावती दुर्गा को समर्पित हैं। 

इस मंदिर समूह में आधा दर्जन से ज्यादा शिवलिंग स्थापित हैं। मुख्य शिव मंदिर का शिवलिंग शुद्ध नीलम का बना हुआ है जो काफी आकर्षित है। 


20. सूर्य मंदिर

उत्तराखंड राज्य अल्मोड़ा जिला कटारमल गांव में स्थित यहाँ मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। यहाँ मंदिर समुंद्र तल से 2116 की ऊंचाई पर स्थित है, कोणार्क मंदिर ओडिशा के बाद ये भारत का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर है। 

इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा 6वीं से 9वीं शताब्दी में करवाया गया था। यहा मंदिर वास्तुकला में काफी सुंदर है, इसके आस-पास बड़े-छोटे 45 मंदिर का समूह है जो काफी आकर्षित है। 


21. सन्तला देवी मंदिर

देहरादून जिले में स्थित माँ सन्तला देवी मंदिर पूरे साल खुला रहता है। पौराणिक कथाओ के अनुसार 11वीं शताब्दी में नेपाल के राजा को जब पता चला कि उनकी पुत्री संतला देवी से एक मुगल सम्राट शादी करना चाहता है, तब संतला देवी नेपाल से पर्वतीय रास्तों से होकर दून में एक पर्वत पर किला बनाकर निवास करने लगी। 

इस बात का पता जैसे ही मुगलो को चला उन्होंने किले पर हमला कर दिया। जब उनको एहसास हुआ की वो मुगलों से लड़ने में सक्षम नहीं है तो उन्होंने भगवान की प्रार्थना शुरू कर दी और तभी एक दिव्या प्रकाश उनपर पड़ा जिनसे व्हे पत्थर की मूर्ति बन गयी और सभी मुगल सिपाही उस प्रकाश से अंधे हो गए। 


22. टपकेश्‍वर मंदिर

टपकेश्‍वर मंदिर देहरादून जिले में टोंस नदी के निकट एक गुफा में स्थित है। इसे दूधेश्वर नाम से भी जाना जाता है। महाभारत में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है, कहते हैं कि दूध से वंचित गुरु द्रोणाचर्य के पुत्र अश्वत्थामा ने भगवान भोलेनाथ की छह माह तक कठोर तपस्या की। 

अश्वत्थामा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दूध प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था और पहली बार अश्वत्थामा ने इसी मंदिर में दूध का स्वाद चखा। 


23. गंगोत्री मंदिर

गंगोत्री मंदिर या गंगोत्री धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। जीवन की धारा देवी गंगा ने पहली बार धरती को इसी जगह पर स्पर्श किया था। गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी की शुरुआत में एक गोरखा कमांडर, अमर सिंह थापा द्वारा किया गया था। 

यह मंदिर 3100 मीटर की ऊँचाई पर ग्रेटर हिमालय रेंज पर स्थित है। पौराणकि कथाओ के अनुसार भगवान श्री राम के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजो को पाप मुक्त करवाने के लिए माँ गंगा को धरती में बुलाने के लिए एक पवित्र शिलाखंड पर बैठ कर यही पर तपस्या की थी। इसलिए इसे भागीरथी के नाम से भी जाना जाता है। 




24. भद्रराज मंदिर

पहाड़ों की रानी मंसूरी सें लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी की चोटी में भद्राज देवता का पौराणिक मंदिर है। ग्रंथो के अनुसार भद्राज भगवान कृष्ण के बडे भाई बलराम को कहा जाता है। प्रति वर्ष मई माह की संक्राति और 16-17 अगस्त को भद्राज मेला लगता है जो काफी प्रसिद्ध है। 


25. केदारनाथ मंदिर

रुद्रप्रयाग जिले के गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर केदारनाथ मंदिर या केदारनाथ धाम स्थित है। यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। यहा मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी। 


अंतिम शब्द 

उम्मीद करते है की हमारे द्वारा बताये गए उत्तराखंड के 25 प्रसिद्ध मंदिर और उन मंदिरो की रोचक जानकारी से आप प्रभावित हुए होंगे। अगर आपको हमारा लेख पसंद आया तो निवेदन करते है की इसको अपने सभी मित्रो के साथ साझा करे। धन्यवाद।