यूँ तो हमने अपनी दादी या नानी से काफी कहानिया सुनी है। जिसमे से कुछ सच होने का एहसास दिलाती है और कुछ हमारे मज़ाक का हिस्सा बन कर रह जाती है। पर क्या आपने कभी ऐसा सुना है की हमारी दुनिया में कुछ प्राणी ऐसे भी है जो अज़र अमर है। 

अगर हम वैज्ञानिक नजरिये से देखे तो हमको पता है की जो मनुष्य इस धरती में जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है। सभी धर्मो के ग्रंथो में भी ये बताया गया है, भगवत गीता में भी श्री कृष्ण ने अर्जुन को यही सन्देश दिया था की सिर्फ आत्मा अमर है जो समय-समय पर अपना शरीर बदलती रहती है, लेकिन  शरीर नश्वर है जो बूढ़ा हो जाता है और उसको हमारी आत्मा को त्यागना पड़ता ही है।

लेकिन हमारे पुराणों में ऐसे 8 लोग भी बताए गए हैं, जिन्होंने जन्म लिया है पर वो अपने कर्मो के कारण हजारों सालों से देह धारण किए हुए हैं यानी वे अभी भी जीवित हैं, उनकी मृत्यु होना असंभव है। वे हर युग में अपनी शक्तियों के आधार पर अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं।

हमारे ग्रंथो में ऐसे ही 8 प्राणियों के बारे में बताया गया है जो पौराणिक काल से जीवित है और इस धरती पर मौजूद है जिनको हम अष्टचिरंजीवी भी कहते है यानी 8 पात्र जो हमेशा जीवित रहेंगे और इन्हें कभी बुढ़ापे का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस लेख में हम आपको उन 8 चिरंजीवी के बारे में बताएंगे और वो कैसे अमर हुए इसके बारे में भी। 


हिन्दू धर्म के अनुसार 8 चिरंजीवी (8 Immortals) जो अमर है।


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1. हनुमान जी 

कहते हैं त्रेता युग में श्री राम की मदद करने के लिए स्वयं शिव जी ने हनुमान रूप में धरती पर जन्म लिया था। उन्ही की मदद से श्री राम ने माता सीता को रावण से मुक्त करवाया था। 

कहा जाता है जब हनुमान जी श्री राम के आदेश पर लंका की अशोक वाटिका माता सीता से भेट करने गए तब उन्होंने माता सीता को राम जी की अंघूटी दी श्री राम और अपने प्रति हनुमान जी का भक्ति भाव देख माता सीता ने उन्हें अज़र अमर का वरदान दिया। 

अज़र अमर का मतलब यानी न कभी उनकी मृत्यु होगी और न कभी उनका शरीर बूढ़ा होगा। 


2. परशुराम

अष्टचिरंजीवी में परशुराम भी एक माने जाते है कहा जाता है की कलयुग के अंत में जब नारायण कल्कि अवतार में अवतरित होंगे तो उनको अस्त्र-शास्त्र शिक्षा का ज्ञान भगवान परशुराम दुवारा ही प्राप्त होगा। 

वह भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं, परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था। 

परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था अपने कठोर तप से उन्होंने शिव जी को प्रसन्न कर उनसे परसु अस्त्र प्राप्त किया तब से वह परशुराम कहलाने लगे। 


3. राजा बलि

राजा बलि के बारे में कौन नहीं जानता जब बात महान दानवीरो की बात आती है तो उसमे राजा बलि को अवस्य गिना जाता है, राजा बलि जो की नारायण के प्रिय भक्त प्रलाद के पौत्र थे और साथ ही साथ नारायण के भक्त भी थे। 

राजा बलि व्ही राजा है जिनसे नारायण ने वामन अवतार में तीन पग जमीन की भिक्षा मांगी और दो पग में तीनो लोक नाप दिए फिर तीसरा पग उन्होंने राजा बलि के कहे अनुसार उनके सर पर रखा और उनको सुताल लोक भेज दिया। 

राजा बलि आज भी सुताल लोक में राज करते है और नारायण ने उनके दानवीर सवभाव से प्रसन्न होकर उनको (अज़र-अमर)चिरंजीवी का वरदान भी दिया। 


4. ऋषि व्यास (महर्षि वेदव्यास)

ऋषि व्यास को महर्षि वेदव्यास भी कहा जाता है, इन्होने ही चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया और साथ ही साथ इन्होने 18 पुराणों की रचना भी की। 

महर्षि वेदव्यास ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था। श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी महर्षि वेदव्यास दुवारा ही की गयी है। 


5. राजा विभीषण

राजा विभीषण लंका पति रावण के छोटे भाई है, कहा जाता है इनके बिना रावण का अंत ही नहीं होता क्युकी इन्होने ही रावण के प्राण नाभि में है इसका राज श्री राम को विभीषण ने ही बताया था। 

जब रावण ने सीता माता का हरण किया तो विभीषण ने रावण को समझाया की वो माता सीता को वापस कर श्री राम की शरण में चले जाए जिससे क्रोधित होकर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया। 

राजा विभीषण श्री राम का प्रिय भक्त में से एक माने जाता है उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ही श्री राम ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। 


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6. मुनि कृपाचार्य

मुनि कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरू थे। अपने कर्मो के आधार पर उनको अमर'त्व प्राप्त हुआ चिरंजीवियों में वे भी एक हैं। कृपाचार्य शरद्वान्‌ के पुत्र थे शरद्वान की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने जानपदी नामक एक देवकन्या को भेजा जिसके गर्भ से दो यमज भाई-बहन पैदा हुए। 

पिता-माता दोनों ने इन्हें जंगल में छोड़ दिया जहाँ महाराज शांतनु ने इनको देखा और इनको अपने साथ ले आये अथवा इनका पालन पोषण कर इनका नामकरण किया इनका नाम कृप तथा कृपी रख दिया। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ और उनके पुत्र अश्वत्थामा हुए।


7. अश्वथामा

अश्वथामा पिता द्रोणाचार्य माता कृपी के पुत्र और मुनि कृपाचार्य के भांजे है। अश्वत्थामा महाभारत में कुरुक्षेत्र युद्ध लड़ने वाले योद्धाओं में से जीवित योद्धा है, द्रौपदी के 5 निर्दोष पुत्रों की हत्या करने पर भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया। 

की सृष्टि के अंत तक ऐसे ही चिरंजीवी बन कर अपने घाव और अपने पाप के साथ जीवित रहना पड़ेगा न कोई उससे बात करेगा और न ही कोई उसको पसंद करेगा। 

मान्यताओं के अनुसार मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक असीरगढ़ का किला है, इस किले में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।


8. ऋषि मार्कण्डेय

ऋषि मार्कण्डेय के बारे में कहा जाता है की व्हे बड़े ज्ञानी थे लेकिन उनके भाग्य में सिर्फ 16 वर्ष की आयु तक जीवन लिखा था। अपनी मृत्यु को टालने के लिए उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र की सिद्धि कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और अमरत्व का वरदान प्राप्त किया। 


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अंतिम शब्द 

हमारे लेख 8 Immortals Of Hindu Mythology in Hindi में बताई गयी सारी जानकारी धर्म ग्रंथो दुवारा एकत्रित कर आप तक पहुचायी है, अगर आप भी इस लेख से प्रभावित है तो निवेदन इस लेख को अपने बाकी मित्रो के साथ भी साझा करे।  धन्यवाद।