साल की सभी चौबीस एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे महत्वपूर्ण है। निर्जला का अर्थ है बिना पानी और निर्जला एकादशी का व्रत बिना पानी और किसी भी प्रकार के भोजन के किया जाता है। 

कठोर उपवास नियमों के कारण निर्जला एकादशी व्रत सभी एकादशी व्रतों में सबसे कठिन है। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। 


Nirjala Ekadashi

निर्जला एकादशी 2023 तिथि

एकादशी तिथि प्रारंभ - 30 मई 2023 को दोपहर 01:07 बजे

एकादशी तिथि समाप्त - मई 31, 2023 को दोपहर 01:45 बजे


निर्जला एकादशी क्यों मनाते है?

निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओ के अनुसार, पांडवों में सबसे बलशाली भीम खान-पान के बहुत बड़े शौकीन थे। अपनी भूख बर्दाश्त न होने के कारण वह साल में एक भी एकादशी व्रत नहीं रखते थे। 

बाकी चारो पांडव भाई माता कुंती अथवा द्रौपदी साल के सारे एकादशी का व्रत बड़े धर्म पूर्वक किया करते थे। भीम अपनी अन्न न त्याग पाने की लाचारी से परेशान था, उसको लगता था की वह एक भी व्रत न रख कर भगवान नारायण का अपमान कर रहा है। 

इस परेशानी के समाधान के लिए भीम ने महर्षि वेद व्यास से आग्रह किया। तब महर्षि व्यास ने भीम को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत करने को कहा। और बताया कि निर्जला एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति को सभी 24 एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है।


निर्जला एकादशी का महत्व 

निर्जला एकादशी का व्रत जल के महत्‍व को दर्शाता है इस महीने में तेज गर्मी पड़ने के कारण आराम दिलाने वाली चीज़ो का दान करना सबसे शुभ माना जाता है। 

मान्यता के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत सभी तीर्थों में स्नान करने के समान होता है। इस दिन अन्‍न, पंखा, छाता, बिस्‍तर, जूते और वस्‍त्र दान करने से मुनष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी दुख-कष्ट दूर हो जाते हैं। 


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निर्जला एकादशी पूजा विधि 

  1. सुबह जल्दी उठ कर स्नान-शौच आदि कर के साफ़ वस्त्र पहन कर व्रत का संकल्प ले। 
  2. इसके बाद अपने पूजा घर में भगवान नारायण और माता लक्ष्मी के समक्ष दीप जलाए। 
  3. श्री लक्ष्मी नारायण को गंगा जल, तुलसी, फल, फूल अर्पित करे।
  4. अपने घर में ही मिष्ठान बना ले और भगवान को भोग लगाए, केवल सात्विक चीज़े ही भगवान को अर्पित करे।
  5. इसके बाद आरती भजन जो आपको सही लगे अपनी श्रद्धा अनुसार करे अथवा निर्जला एकादशी की कथा अवश्य पढ़े। 
  6. फिर अगले दिन द्वादशी को स्नान आदि कर के भगवान की पूजा करने के बाद जरूरतमंदों को दान करे और फिर अपना व्रत पूर्ण करके आप भी जल अथवा अन्न ग्रहण करें।