भारत के चार धामों में से एक जगन्नाथ पूरी मंदिर भगवान नारायण के आठवे अवतार श्री कृष्ण अथवा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को समर्पित है। श्री जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा पूरे विश्व में प्रशिद्ध है। पर क्या आप जानते है यहाँ रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है, इसका महत्व क्या है? यह सारी जानकारी हम आपको इस लेख में बताएंगे।


कब निकाली जाती है रथ यात्रा 

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार, श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के दर्शन करना जीवन के लिए बड़ा सौभाग्य शाली माना गया है। यह रथ यात्रा जून और जुलाई के बीच के समय में शुरू होती है जिसको हिन्दू पंचांग में आषाढ़ मास कहा जाता है। इस रथ यात्रा का आयोजन जगन्नाथ पूरी मंदिर (जो ओडिशा में स्थित है) से शुरू होता है। 

भारी श्रद्धालुओं के बीच से यहाँ रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमे सबसे आगे बलभद्र (बलराम) उसके पीछे देवी सुभद्रा और अंत में श्री जगन्नाथ जी का रथ चलता है जिसको रस्सियों से भक्तो द्वारा खींचा जाता है।  

बलभद्र जी के रथ को तालध्वज, देवी सुभद्रा के रथ को पद्म रथ, अथवा श्री जगन्नाथ जी के रथ को नंदी घोष कहा जाता है। 

इस साल अर्थात 2023 में यह रथ यात्रा 20 जून को शुरू होगी। 


क्यों मनाया जाता है रथयात्रा का उत्सव

हिन्दुओं के सबसे पौराणिक त्योहारों में से एक जगन्नाथ रथ यात्रा को मनाने के पीछे मन्यताओ के अनुसार अलग-अलग कथा प्रचलित है। 

पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है की गुंडीचा माता श्री कृष्ण की मासी है और वह उन्हें अपने यहाँ खाने का निमंत्रण देती है जिसके बाद बड़े भाई बलराम, बहन सुभद्रा और जगन्नाथ जी अपने-अपने रथ में बैठ कर वह जाते है।  

एक और कथा के अनुसार माना जाता है की बहन सुभद्रा अपने मायके आती है और अपने भाइयो से नगर भ्रमण की इच्छा जताती है जिसके चलते तीनो की रथ यात्रा निकाली जाती है। 

तीसरी कथा के अनुसार माना जाता है की इस दिन श्री कृष्ण ने कंश का वध कर नगर वासियो को धर्षन देने हेतु नगर भ्रमण किया जिसके चलते रथ यात्रा निकाली गयी। कुछ लोग यहाँ भी मानते है की इस दिन कंश ने बलराम, सुभद्रा और श्री कृष्ण को खाने में आमंत्रित किया था जिसके चलते उसने सारथि के साथ गोकुल में रथ भिजवाए थे। तब से रथ यात्रा मनाई जाती है।  

चौथी कथा के अनुसार कहा जाता है की एक बार माता राधा ने श्री कृष्ण को वृंदावन आने के लिए आमंत्रित किया जिसके चलते भाई बलराम और बहन सुभद्रा ने भी साथ चलने की इच्छा जताई। नगर में पहुंचते ही श्री कृष्ण को विश्राम करने का मन हुआ जिसके चलते तीनो वन में कुछ समय के लिए विश्राम करने लग गए। उसी समय उनके अश्व चोरी हो गए तब नगर वासियो ने खुद उनके रथ को खींच कर वृन्दावन का भ्रमण करवाया। 


Jagannath Puri Rath Yatra


महाभोग में खिचड़ी का रहस्य 

जगन्नाथ मंदिर में सबसे पहले खिचड़ी का भोग भगवान को लगाया जाता है। माना जाता है की बहुत समय पहले भगवान की प्रिय भक्त कर्मा बाई नाम की एक महिला हुआ करती थी जिसका दुनिया में कोई नहीं था। लेकिन वह भगवान की परम् भक्तो में से एक थी जो भगवान को अपने बालक स्वरुप में पूजा अथवा स्नेह करती थी। 

बूढी होने के बावजूद वह भगवान को भोग लगाना कभी नहीं भूलती एक दिन उनके मन में आया की वह भगवान को फल के अलावा कुछ और भोग लगाएंगी। भगवान जगन्नाथ कर्मा बाई की मन की बात जान गए और वह सुबह उनके घर आ गए और बोले की मुझे भूक लगी है माँ कुछ खिलाओगी नहीं। 

यहाँ देख कर्मा बाई ने खिचड़ी बनाई और भगवान को परोस दी और उनके बगल में बैठ पंखा करने लगी। भगवान बड़े चाओ से खिचड़ी खाने लगे और बोले खिचड़ी बहुत अच्छी है अबसे वह रोज़ खिचड़ी खाने आएँगे। यह सुन कर्मा बाई बहुत प्रसन्न हुई और रोज भगवान के लिए खिचड़ी बनाने लगी। 

भगवान रोज़ खिचड़ी खाने आते औरखिचड़ी खाकर महाभोग से पहले चले जाते। एक दिन एक ऋषि उनके यहाँ आया और उसने देखा की कर्मा बाई बिना स्नान, साफ़-सफाई किए भगवान के कुछ पका रही है जब उस ऋषि ने कर्मा बाई से पूछा की वह सुबह-सुबह क्या बना रही है तो कर्मा बाई ने ऋषि को सारी बात बताई। 

यहा बात सूं ऋषि ने कर्मा बाई को कहा की माता आप भगवान को भोग लगा रहे है बिना स्नान, साफ़ सफाई किये हुए। आप भगवान को झूठा खाना खिलाते हो यहाँ उनका अपमान नहीं है। यह बात सुन कर्मा बाई दुखी हो गई और उनको अपनी गलती का एहसास हुआ उन्हें लगा की उनकी इस हरकत से कही भगवान रुष्ट न हो जाए। पर भगवान की तो इसमें भी लीला छुपी थी। 

ऋषि के आदेश अनुसार कर्मा बाई ने सभी बातो का पालन किया उन्होंने स्नान किया अपनी कुटिया साफ़ की बर्तन रसोई साफ़ करने लगी तभी भगवान आ गए और बोले माँ बहुत भूक लगी है खिचड़ी खिला दो। कर्मा बाई जल्द खिचड़ी बनाई और भगवान को परोसी भगवान ने फटाफट खिचड़ी खाई और बिना मूह धोए चले गए। 

जब पुजारी ने मंदिर के द्वार खोले और भगवान को महाभोग लगाने लगे तब उन्होंने देखा की भगवान के मूह पर खिचड़ी लगी हुई है। यहाँ देख पुजारी हैरान रह गया क्योकि मंदिर में उससे पहले कोई नहीं आया था तो भगवान के मूह पर खिचड़ी कैसे लगी। यहाँ बात जब उसने राजा को बताई तो राजा भी वह देख हैरान रह गए। 

तब उन सब ने भगवान से इन सब के बारे में जान ने के लिए प्र्थना की तब भगवान ने उन्हें अपनी परम् भक्त कर्मा बाई के बारे में और खिचड़ी के बारे में बताया। तब राजा ने कर्मा बाई से हमेशा महाभोग में खिचड़ी बनाने के लिए प्र्थना की। यहा सुन कर्मा बाई बहुत प्रसन्न हुई और भगवान की लीला से पुरी वासी भी यहाँ बात जान गए की भगवान सिर्फ भाव, भक्ति और प्रेम के भूखे है। 



श्री जगन्नाथ मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई?

माना जाता है की भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनने से पहले से, भगवान जगन्नाथ नीलांचल पर्वत में नीलमाधव के रूप में प्रस्तुत थे। जिनकी पूजा सबर जनजाति के परम पूज्य देवता के रूप में की जाती थी। सबसे पहले इनकी पूजा आदिवासी विश्‍ववसु ने नीलमाधव के रूप में की थी। 

बाद में मालवा के राजा इंद्रदयुम्न को सपने में श्री जगन्नाथ जी के दर्शन हुए उन्होंने राजा इंद्रदयुम्न को एक मंदिर बनाने के लिए कहा राजा ने विशाल मंदिर बना दिया उसके बाद उसने भगवान नारायण से विराजमान होने के लिए कहा। 

भगवान ने राजा से समुद्र में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाने के लिए कहा, जो द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा था जिससे मूर्ति का निर्माण होना था। 

राजा अपने सिपाहियों के साथ वह लकड़ी का बड़ा टुकड़ा लेने पंहुचा लेकिन वो टुकड़ा राजा के सिपाही नहीं उठा पाए। फिर राजा ने इसके लिए विश्‍ववसु जो नीलमाधव का सच्चा भक्त था उससे मदद मांगी। विश्‍ववसु ने अकेले ही उस लकड़ी को उठा लिया और मंदिर स्थान में ले गया। 

लकड़ी इतनी मजबूत थी की उसमे मूर्ति आकार देने के लिए औजार इस्तेमाल करते औजार टूट जाते सारी कोशिश कर ली लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर एक दिन एक वृद्ध व्यक्ति जो की विश्वकर्मा जी थे कारीगर का रूप धारण करके राजा के पास गए और उन्होंने राजा से शर्त रखी की वो 21 दिन में मूर्ति बनाएंगे और अकेले में बनाएंगे। 

कोई उनको बनाते हुए नहीं देख सकता अगर ऐसा किसी ने किया तो वो उस मूर्ति को उतने ही रूप में छोड़ कर वे प्रस्थान कर लेंगे। राजा उनकी सारी शर्ते मान गया और मूर्ति का काम आरम्भ हो गया। प्रति दिन छैनी-हतोड़े की आवाज़ आती थी, एक दिन राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी रानी गुंडिचा अपने आप को रोक ना सकी और कमरे के बहार खड़ी होकर सुनने लगी लेकिन अंदर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। 

रानी घबरा गयी को तुरंत राजा के पास गयी और राजा से कहा की इतने दिनों से वह वृद्ध कारीगर काम कर रहा है बिना खान-पान किये कही वो शायद मर तो नहीं गया। यहाँ बात सुनते ही राजा संकोच में पड़ गया उनको उस वृद्ध की शर्त याद थी पर भगवान की लीला के आगे किसकी चलती है। 

राजा ने तुरंत अपने सिपाहियों को दरवाजा खोलने का आदेश दिया। जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला वो वृद्ध उसी समय अंतर्ध्यान हो गया। यहाँ देख राजा बड़ा निराश हुआ क्योंकि तीन मूर्तियाँ अधूरी बनी हुई थी। इतने में आकाश-वाणी हुई की राजन हम इसी रूप में रहना चाहते थे इसलिए ऐसा हुआ तुम इसके लिए अपने आप को दोष मत दो और हमारी मूर्ति को ऐसे ही स्थापित कर दो। 

इसके बाद राज इंद्रदयुम्न और रानी गुंडिचा ने बड़े विशाल यज्ञ करवाए सरोवर बनवाया इसके बारे में ग्रंथो में भी बताया गया है। इसके बाद कई बार मंदिर टूटा और उन सदी के राजाओ के द्वारा फिर बनवाया गया। 


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जगन्नाथ पूरी के सुने-अनसुने तथ्य 

  1. हर 12 साल में श्री जगन्नाथ बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्ति को बदला जाता है। 
  2. जगन्नाथ मंदिर समुन्द्र के किनारे स्थित है जहा पर लेहरो की आवाज़ आती रहती है लेकिन मंदिर में एक सिंहद्वार है जिसमे अंदर प्रवेश करते ही समुन्द्र की लेहरो की आवाज़ आना बंद हो जाती है। 
  3. आज तक मंदिर के ऊपर कोई पक्षी को बैठते या उड़ते नहीं देखा गया। और ख़ास बात तो यहाँ है की मंदिर की परछाई कभी जमीन पर नहीं पड़ती अब यहा कोई चमत्कार है या कोई विज्ञान। 
  4. जगन्नाथ मंदिर का झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा की और लेहराहता है। इस झंडे को रोज़ बदला जाता है क्योंकि ऐसा मन्ना है की यदि मंदिर का झंडा एक दिन भी नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालो के लिए बंद हो जाएगा। 
  5. मंदिर के ऊपर लगा सुदर्शन चक्र किसी भी दिशा से देखने पर उसका मुख सामने की तरफ ही दिखता है।