वरुथिनी एकादशी, जिसे बरुथनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, यह सनातन धर्म का एक पवित्र दिन है।वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा गया है। 

इस व्रत के बारे में धर्म शास्‍त्रों में स्पष्ट रूप से बताया गया है। इस दिन भगवान श्री हरी नारायण के वराह अवतार का पूजा अनुष्ठान किया जाता है, माना जाता है की ऐसा करने से उपासक को अपने जीवन मे पुण्य फल प्राप्त होते है और सीधा वैकुण्ठ धाम में स्थान मिलता होता है। 


वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

वरुथिनी एकादशी 2023

तिथि आरंभ 15 अप्रैल 2023 को रात 08 बजकर 45 मिनट पर शुरू अथवा 16 अप्रैल 2023 शाम 06 बजकर 14 मिनट में समापन। 


वरुथिनी एकादशी व्रत महत्व

स्कंद पुराण के अनुसार इस दिन उपासक को शुभ सौभाग्य प्राप्त होता है सनातन धर्म में अन्न दान को बहुत श्रेष्ट माना जाता है, इससे पितृ, देवता, मनुष्य, जीव-जंतु आदि सब तृप्त हो जाते हैं। इस दिन जो भी मनुष्य व्रत रखता है, अन्न दान, जल सेवा करता है उसे दस सहस्र वर्ष तपस्या करने जितना फल प्राप्त होता है और उसके जीवन की सभी नकारात्मक ऊर्जा का अंत होता है। 


वरुथिनी एकादशी पूजा विधि

  • एकादशी के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  • उसके बाद श्री भगवान विष्णु को फल-फूल, अक्षत, दीपक, नैवेद्य, आदि सामग्री से विधि अनुसार पूजन करें।
  • घर के आसपास अगर पीपल का पेड़ है तो उसमें कच्चा दूध चड़ाए और घी का दीपक जला कर भगवान नारायण का ध्यान करे अथवा तुलसी की भी पूजा करे। 
  • 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का पूजा के समय जप करते रहें।
  • पूरे दिन श्री हरी का नाम जप करते रहे उनका स्मरण करते रहे। 
  • श्याम के समय माता लक्ष्मी और श्री हरि की पूजा अर्चना करे और फिर रात्रि में उनका कीर्तन भजन करे। 
  • अगले दिन भगवान नारायण की पूजा करे और किसी ब्राह्मण या किसी जरूरत मंद को भोजन कराए दान दक्षिणा दे। 

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा 

प्राचीन समय में मान्धाता नामक राजा हुआ करते थे उनका राज्य नर्मदा नदी के तट पर बसा था। राजा दयालु दानशील अथवा तपस्वी थे। एक दिन वह जंगल में तपस्या कर रहे थे तभी वह जंगली भालू आया और राजा के पैर को खाने लगा राजा भगवान के ध्यान में इतना लीन थे की उनको कुछ भी पता नहीं लगा। 

कुछ समय बाद भालू राजा को घसीट कर जंगल की और ले गया तब राजा का ध्यान टूटा और वह घबरा कर भगवान नारायण को मदद के लिए पुकारने लगा। भक्त की पुकार सुन भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से भालू का वद्ध कर दिया। 

राजा के पैर को भालू पहले ही चबा के नष्ट कर चूका था यह देख राजा बहुत उदास हुआ अपने भक्त को दुखी देख भगवान नारायण ने राजा को मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने और उनके वराह अवतार की पूजा आराधना करने को कहा। 

राजा ने बिलकुल ऐसा ही किया वह पूरे भक्ति भाव से व्रत रख भगवान वराह की पूजा अर्चना करने लगा। इसके प्रभाव से राजा के शीघ्र ही संपूर्ण अंग वापस आ गए और अपना जीवन पूरा करने के बाद राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई। 

जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित होता है उसको वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त नकरात्मकता का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।



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अंतिम शब्द 

इस लेख में बताई गयी जानकारी सनातन मान्यताओं, धर्म ग्रंथो के आधार पर दी गयी है। हमारा उद्देश्य महज सनातन धर्म के बारे में लोगो तक सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता/पाठक इसे महज सूचना समझकर ही लें। धन्यवाद।