सेतु निर्माण के समय जब श्री राम लंका में प्रवेश कर रहे थे तब उन्होंने रामेश्वरम में स्वयं शिवलिंग की स्थापना के साथ भगवान शिव के आशीर्वाद के लिए उनका आह्वान किया। शम्भु स्तुति को भगवान राम द्वारा रचित बताया गया है, इस शम्भु स्तुति का उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलता है। चलिए जानते है अर्थ सहित शम्भु स्तुति के बारे में -


शम्भु स्तुति || Shambhu Stuti


|| श्रीराम उवाच ||

नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम्।
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि॥1॥

अर्थ - मैं पुराणपुरुष शिव को नमस्कार करता हूँ। जिनकी असीम शक्ति का कहीं अन्त नहीं है, उन सर्व-ज्ञानी शिव को मैं प्रणाम करता हूँ। अविनाशी प्रभु रुद्र को में नमस्कार करता हूँ। सबका संहार करने वाले शर्व को में प्रणाम करता हूँ।


नमामि देवं परमव्ययंतं उमापतिं लोकगुरुं नमामि।
नमामि दारिद्रविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि॥2॥

अर्थ - जिसका नाश न हो सके ऐसे परमदेव को प्रणाम करता हूँ। लोकगुरु उमापति को प्रणाम करता हूँ। दरिद्रता को विदीर्ण करने वाले शिव को नमस्कार करता हूँ। सभी रोगों का अंत करने वाले महेश्वर को प्रणाम करता हूँ।


नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम्।
नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि॥3॥

अर्थ - जिनका रूप चिन्तन का विषय नहीं है, उन कल्याणमय शिव को में प्रणाम करता हूँ। विश्व उत्पत्ति के बीजरूप भगवान भव को प्रणाम करता हूँ। जगत पालन करने वाले परम पिता को में प्रणाम करता हूँ। संहारकारी रुद्र को नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ।


नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यं क्षरमक्षरं तम्।
नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि॥4॥

अर्थ - माँ गौरी जी के प्रियतम उन शिव को में प्रणाम करता हूँ। नित्यक्षर-अक्षरस्वरूप शंकर को में प्रणाम करता हूँ। जिनका स्वरूप चिन्मय है और अप्रमेय है, उन त्रिलोचन भगवान को मैं मस्तक झुकाकर बारम्बार प्रणाम करता हूँ।


नमामि कारुण्यकरं भवस्या भयंकरं वापि सदा नमामि।
नमामि दातारमभीप्सितानां नमामि सोमेशमुमेशमादौ॥5॥

अर्थ - करुणा करने वाले भगवान शंकर को में प्रणाम करता हूँ तथा संसार को भय देने वाले भूतनाथ भगवान को सर्वदा प्रणाम करता हुँ। मन चाहा फल देने वाले दाता महेशवर को में प्रणाम करता हूँ। भगवती उमा के स्वामी श्रीसोमनाथ को में प्रणाम करता हूँ।


नमामि वेदत्रयलोचनं तं नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम्।
नमामि पुण्यं सदसद्व्यतीतं नमामि तं पापहरं नमामि॥6॥

अर्थ - तीनों वेद जिनके तीन नेत्र हैं, उन त्रिलोचन को प्रणाम करता हूँ। त्रिविध मूर्ति से रहित सदाशिव को प्रणाम करता हूँ। पुण्यमय शिव को प्रणाम करता हूँ। सत्-असत् से पृथक् परमात्मा को प्रणाम करता हूँ। पापों को नष्ट कर उसको हरने वाले भगवान को में प्रणाम करता हूँ।


नमामि विश्वस्य हिते रतं तं नमामि रूपाणि बहूनि धत्ते।
यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता नमामि तं विश्वपतिं नमामि॥7॥

अर्थ - जो विश्व हित में हमेशा लगे रहते हैं, बहुत-से रूप धारण करते हैं, उन भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूँ। जो संसार के रक्षक तथा सत् और असत् के निर्माता हैं, उन विश्वपति विश्वनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ।


यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं तथागतिं लोकसदाशिवो यः।
आराधितो यश्च ददाति सर्वं नमामि दानप्रियमिष्टदेवम्॥8॥

अर्थ - हव्य-कव्य स्वरूप यज्ञेश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ। सम्पूर्ण लोकों का सदा कल्याण करने वाले भगवान शिव आराधना करने पर उत्तम गति एवं सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ प्रदान करते हैं, उन दानप्रिय इष्टदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।


नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं उमापतिं तं विजयं नमामि।
नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि॥9॥

अर्थ - जो चन्द्रमा के स्वामी है उन सोमनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ। जो स्वतन्त्र न रहकर भक्तों के वश रहते हैं, उन विजयशील उमानाथ को मैं प्रणाम करता हूँ। विघ्नराज गणेश तथा नन्दी के स्वामी पुत्रप्रिय भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ।


नमामि देवं भवदुःखशोकविनाशनं चन्द्रधरं नमामि।
नमामि गंगाधरमीशमीड्यम् उमाधवं देववरं नमामि॥10॥

अर्थ - संसार के दुखों और क्लेशों का नाश करने वाले भगवान चन्द्रशेखर को मैं प्रणाम करता हूँ। जो माँ गंगा जी को अपने मस्तक पर धारण करते हैं, उन महेश्वर को प्रणाम करता हूँ। देवताओं में श्रेष्ठ उमापति को मैं प्रणाम करता हूँ।


नमाम्यजादीशपुरन्दरादिसुरासुरैरर्चितपादपद्मम।
नमामि देवीमुखवादनाना मिक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत॥11॥

अर्थ - सभी देवता और असुर जिनके चरण कमलों की पूजा करते हैं, उन भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ। जिन्होंने पार्वती देवी के मुख से निकलने वाले वचनों पर दृष्टिपात करने की इच्छा से मानो तीन नेत्र धारण कर रखे हैं, उन भगवान को प्रणाम करता हूँ।


पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैर्विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः।
अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः सम्पूजितं सोममहं नमामि॥12॥

अर्थ - पंचामृत, चन्दन, उत्तम धूप, दीप, भाँति-भाँति के विचित्र पुष्प, मन्त्र तथा अन्न आदि सभी उपचारों से पूजित भगवान सोम को में सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ।


Shambhu Stuti


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धार्मिक गुरुओ के अनुसार ब्रह्म पुराण में रचित शम्भु स्तुति का पाठ करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। सोमवार के दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए शम्भुं स्तुति का पाठ करें। ऐसा करने से भगवान शिव अवश्य प्रसन्न होंगे और आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी करंगे।