इस लेख में हम आपको संकट नाशन गणेश स्तोत्र के बारे में बताएँगे यह नारद पुराण में वर्णित है। नारद मुनि ने खुद भगवान गणेश जी की आराधना के लिए यह स्तोत्र समर्पित किया है। 

इस स्तोत्र का पाठ अगर आप नियमित रूप से करंगे तो अवश्य ही भगवान श्री गणेश जी की कृपा आपके ऊपर बनेगी और आपके सभी विघ्नो का नाश होगा। 


Sankat Nashan Shree Ganesh Stotram


संकट नाशन श्री गणेश स्तोत्र || Sankat Nashan Shri Ganesh Stotram 


[ नारद उवाच ]

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।

भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये॥1॥

अर्थ - नारद मुनि कहते है, मैं मस्तक झुका के प्रणाम करता हूं देवी गौरी के पुत्र विनायक देव को।

जो भक्त इनका सदा स्मरण करता है उनकी आयु, कामना और अर्थ सिद्ध हो जाता है।


प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।

तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥2॥

अर्थ - पहला (वक्रतुण्ड) टेढ़ी सूंड वाले, दूसरा (एकदन्त) एक दाँत वाले। 

तीसरा (कृष्णपिङ्गाक्ष) काली और भूरी आँखों वाले, चौथा (गजवक्त्र) हाथी के समान मुख वाले। 


लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।

सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥3॥

अर्थ -  पाँचवाँ (लम्बोदर) बड़े पेट वाले, छठा (विकट) विकराल।  

सातवाँ (विघ्नराजं) विघ्नों पर शासन करने वाले, आठवाँ (धूम्रवर्ण) धूसर वर्ण वाले। 


नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥4॥

अर्थ - नवाँ (भालचन्द्र) जिनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है, दसवाँ (विनायक) मार्गदर्शक।  

ग्यारहवाँ (गणपति) दिशाओं के पति, और बारहवाँ (गजानन) गज के चेहरे वाले। 


द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

अर्थ - जो मनुष्य तीनों संध्याओं के समय प्रतिदिन इन बारह नामों का पाठ करता है। 

उसे विघ्न का भय नहीं होता, इन नामो का स्मरण सभी सिद्धिया देने वाला है। 


विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

अर्थ - इस स्तोत्र से विद्यार्थी विद्या को, धनार्थी धन को प्राप्त करता है। 

संतान की कामना वाले संतान को, मोक्ष की इच्छा रखनेवाले मोक्ष को प्राप्त करता है।


जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् ।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥7॥

अर्थ - जो भी इस स्तोत्र का जप करता है, उसे छेह महीने में मन चाहा फल प्राप्त हो जाता है। 

तथा एक वर्ष में पूरी तरह सिद्धि प्राप्त हो जाती है, इसमें कोई संशय नहीं है। 


अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

अर्थ - जो भी इसे लिख कर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है। 

श्री गणेश जी की कृपा से उसे हर प्रकार की विद्या प्राप्त होती है। 


|| इस तरह नारद पुराण में स्थित संकटनाशन श्री गणेश स्तोत्र समाप्त हुआ || 


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