नटराज स्तोत्र की रचना महायोगी पतंजलि ऋषि ने की है। ऋषि पतंजलि द्वारा नटराज स्तोत्र की रचना चेतना की उच्च अवस्था में की थी। शिव सभी कलाओं के स्वामी है, संसार में ध्वनि की उत्पत्ति भी उनसे हुई है और शिव उन ध्वनियों से परे भी व्ही हैं। इसीलिए उन्हें भैरव भी कहा जाता है। 

नटराज शिव की एक स्थिति को दर्शाता है। चार हाथ, दो पैरों वाले शिव ओंकार रूप में हैं। एक उठा हुआ पांव मोक्ष का द्योतक है और बौने या अज्ञान को कुचलने वाला पांव ज्ञान की उत्पत्ति की ओर संकेत करता है।

सोमवार के दिन भगवान शिव की आकृति के सामने बैठ कर इसका पाठ करे आपके ऊपर भगवान शिव की कृपा दृष्टि बनी रहेगी अथवा कलात्मक चीज़ो में बढ़ोतरी होगी। 


श्री नटराज स्तोत्रम् || Shri Nataraja Stotram


|| अथ-चरणश‍ृङ्गरहित-नटराजस्तोत्रम् ||


सदंचित-मुदंचित निकुंचित पदं झलझलं-चलित मंजु कटकम् ।

पतंजलि दृगंजन-मनंजन-मचंचलपदं जनन भंजन करम् ।

कदंबरुचिमंबरवसं परममंबुद कदंब कविडंबक गलम्

चिदंबुधि मणिं बुध हृदंबुज रविं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥1॥


हरं त्रिपुर भंजन-मनंतकृतकंकण-मखंडदय-मंतरहितं

विरिंचिसुरसंहतिपुरंधर विचिंतितपदं तरुणचंद्रमकुटम् ।

परं पद विखंडितयमं भसित मंडिततनुं मदनवंचन परं

चिरंतनममुं प्रणवसंचितनिधिं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥2॥


अवंतमखिलं जगदभंग गुणतुंगममतं धृतविधुं सुरसरित्-

तरंग निकुरुंब धृति लंपट जटं शमनदंभसुहरं भवहरम् ।

शिवं दशदिगंतर विजृंभितकरं करलसन्मृगशिशुं पशुपतिं

हरं शशिधनंजयपतंगनयनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥3॥


अनंतनवरत्नविलसत्कटककिंकिणिझलं झलझलं झलरवं

मुकुंदविधि हस्तगतमद्दल लयध्वनिधिमिद्धिमित नर्तन पदम् ।

शकुंतरथ बर्हिरथ नंदिमुख भृंगिरिटिसंघनिकटं भयहरम्

सनंद सनक प्रमुख वंदित पदं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥4॥


अनंतमहसं त्रिदशवंद्य चरणं मुनि हृदंतर वसंतममलम्

कबंध वियदिंद्ववनि गंधवह वह्निमख बंधुरविमंजु वपुषम् ।

अनंतविभवं त्रिजगदंतर मणिं त्रिनयनं त्रिपुर खंडन परम्

सनंद मुनि वंदित पदं सकरुणं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥5॥


अचिंत्यमलिवृंद रुचि बंधुरगलं कुरित कुंद निकुरुंब धवलम्

मुकुंद सुर वृंद बल हंतृ कृत वंदन लसंतमहिकुंडल धरम् ।

अकंपमनुकंपित रतिं सुजन मंगलनिधिं गजहरं पशुपतिम्

धनंजय नुतं प्रणत रंजनपरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥6॥


परं सुरवरं पुरहरं पशुपतिं जनित दंतिमुख षण्मुखममुं

मृडं कनक पिंगल जटं सनक पंकज रविं सुमनसं हिमरुचिम् ।

असंघमनसं जलधि जन्मगरलं कवलयंत मतुलं गुणनिधिम्

सनंद वरदं शमितमिंदु वदनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥7॥


अजं क्षितिरथं भुजगपुंगवगुणं कनक शृंगि धनुषं करलसत्

कुरंग पृथु टंक परशुं रुचिर कुंकुम रुचिं डमरुकं च दधतम् ।

मुकुंद विशिखं नमदवंध्य फलदं निगम वृंद तुरगं निरुपमं

स चंडिकममुं झटिति संहृतपुरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥8॥


अनंगपरिपंथिनमजं क्षिति धुरंधरमलं करुणयंतमखिलं

ज्वलंतमनलं दधतमंतकरिपुं सततमिंद्र सुरवंदितपदम् ।

उदंचदरविंदकुल बंधुशत बिंबरुचि संहति सुगंधि वपुषं

पतंजलि नुतं प्रणव पंजर शुकं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥9॥


इति स्तवममुं भुजगपुंगव कृतं प्रतिदिनं पठति यः कृतमुखः

सदः प्रभुपद द्वितयदर्शनपदं सुललितं चरण शृंग रहितम् ।

सरः प्रभव संभव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शंकरपदं

स गच्छति परं न तु जनुर्जलनिधिं परमदुःखजनकं दुरितदम् ॥ 10॥


|| इति श्री पतंजलिमुनि प्रणीतं चरणशृंगरहित नटराज स्तोत्रं संपूर्णम् ||


Shri Nataraja Stotram


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