गणेश पुराण में वर्णित गणेश जी के नामाष्टक स्तोत्र अपने अर्थों में संयुक्त एवं शुभ करने वाला होता है। जो भक्त इसका तीनों सन्ध्याओं में पाठ करता है वह सभी प्रकार से सुखी होता और सर्वत्र विजय प्राप्त करता है । इस स्तोत्र के पाठ से विघ्नों का नाश उसी प्रकार से हो जाता है, जैसे गरुड़ के द्वारा सर्पों का नाश होता है। इसके प्रभाव से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, पत्नी की अभिलाषा वाले को पत्नी और महामूर्ख को भी श्रेष्ठ विद्या की प्राप्ति होती है। वह निश्चय ही विद्वान् और श्रेष्ठ कवि हो जाता है।
गणेश नामाष्टक स्तोत्र में श्री गणेश के आठ नामो की महिमा अथवा उनका गुणगान किया गया है यहाँ नाम कुछ इस प्रकार है - गणेश, एकदन्त, हेरम्ब, विघ्ननाशक, लम्बोदर, शूर्पकर्ण, गजवक्त्र और गुहाग्रज | ये नाम सर्वत्र मंगल और सर्वत्र संकटों का नाश करने वाले होते हैं।
नामाष्टक स्त्रोतम् || Namashtak Stotram
गणेशमेकदन्तं च हेरम्बं विघ्ननायकम्।
लम्बोदरं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं गुहाग्रजम्॥
नामाष्टार्थं च पुत्रस्य श्रृणु मातर्हरप्रिये ।
स्तोत्राणां सारभूतं च सर्वविघ्नहरं परम्॥
ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचकः।
तयोरीशं परं ब्रह्म गणेशं प्रणमाम्यहम्॥
एकशब्दः प्रधानार्थो दन्तश्च बलवाचकः।
बलं प्रधानं सर्वस्मादेकदन्तं नमाम्यहम्॥
दीनार्थवाचको हेश्च रम्बः पालकवाचकः ।
दीनानां परिपालकं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
विपत्तिवाचको विघ्नो नायकः खण्डनार्थकः ।
विपत्खण्डनकारकं नमामि विघ्नायकम्॥
विष्णुदत्तैश्च नैवेद्यैर्यस्य लम्बोदरं पुरा।
पित्रा दत्तैश्च विविधैर्वन्दे लम्बोदरं च तम्॥
शूर्पाकारौ च यत्कर्णौ विघ्नवारणकारणौ।
सम्पदो ज्ञानरूपौ च शूर्पकर्णं नमाम्यहम्॥
विष्णुप्रसादपुष्पं च यन्मूर्ध्नि मुनिदत्तकम्।
तद् गजेन्द्रवक्त्रयुक्तं गजवक्त्रं नमाम्यहम्॥
गुहस्याग्रे च जातोऽयमाविर्भूतो हरालये ।
वन्दे गुहाग्रजं देवं सर्वदेवाग्रपूजितम्॥
एतन्नामाष्टकं दुर्गे नामभिः संयुतं परम्।
पुत्रस्य पश्य वेदे च तदा कोपं तथा कुरु॥
ततो विघ्नाः पलायन्ते वैनतेयाद् यथोरगाः।
गणेश्वरप्रसादेन महाज्ञानी भवेद् ध्रुवम्॥
पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्यार्थी विपुलां स्त्रियम्।
महाजडः कवीन्द्रश्च विद्यावांश्च भवेद् ध्रुवम्॥