सनातन धर्म के विख्यात देवताओ में से एक यमराज जी है। इनका एक नाम धर्मराज भी है। यमराज जी मृत्यु के देवता है इनके पिता सूर्यदेव अथवा माता संज्ञा है। सज्ञा भगवान विश्वकर्मा की पुत्री है। माता यमुना जिन्हे यमी के नाम से भी जाना जाता है यमराज जी की जुड़वाँ बहन है अथवा शनिदेव इनके भाई है। यमराज जी के अन्य भी भाई अथवा बहन है जिनके नाम कुछ इस प्रकार बताये गए है - वैवस्वत मनु, अश्विनी कुमार, रेवंत, शनि, तपती, सवर्णि मनु, सुग्रीव, कर्ण और भद्रा। 

यमराज जी की सवारी (महिषवाहन) भैसा है। धर्मराज अपने लेखपाल या मुंशी चित्रगुप्त जी की मदद से जीवो को उनके कर्म अनुसार दंड देते है। यमराज जी दक्षिण दिशा के दिक्पाल देवता है इनकी नगरी का नाम संयमनीपुरी है। 


यमराज जी की जन्म कथा

मान्यता है की यमराज के जन्म से पहले जब संज्ञा ने सूर्य देव को देखा तो उनके तेज़ को वे सहन नहीं कर पायी और डर के कारण आँखे बंद कर ली। तब सूर्यदेव ने क्रोधित होकर संज्ञा को श्राप दिया, कि तुम्हे जो पुत्र प्राप्त होगा वह लोगों के प्राण लेने वाला होगा। किंतु जब संज्ञा ने उनकी तरफ चंचल तरीके से देखा तब उन्होंने कहा कि तुम्हें जो कन्या होगी वह इसी प्रकार चंचलता पूर्वक नदी के रूप में बहा करेगी। इसके बाद उनके जुड़वाँ संतान हुई पुत्र का नाम यम और कन्या का नाम यमी रखा गया। आगे चलकर यम यमराज बने और यमी यमुना के नाम से प्रसिद्ध हुई।


यमराज जी के अन्य नाम

मृत्यु के देवता यमराज को धर्मराज के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये धर्मपूर्वक विचार करते हैं, और कर्म अनुसार जीव को उसके कर्म का फल प्रदान करते है इसीलिये 'धर्मराज' भी कहलाते हैं। यम्र्राज़ जी को दंडधर, श्राद्धदेव, धर्म, जीवितेश, महिषध्वज, महिषवाहन, शीर्णपाद, हरि, पितृपति, कृतांत, शमन, काल और कर्मकर नामो से प्रस्तुत किया जाता है। अंग्रेजी में यम को प्लूटो कहते हैं। एक धर्मशास्त्र का नाम भी यम है।


धर्म ग्रंथो में 14 यम का उल्लेख 

धर्मशास्त्र में 14 यम का उल्लेख मिलता है जिनके नाम कुछ इस प्रकार है  - यम, धर्मराज, मृत्यु, औदुम्बर, दध्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, और चित्रगुप्त । इन 14 यमों को उनके नाम से 3-3 अंजलि जल तर्पण में देते हैं।



यमराज जी की मृत्यु

प्राचीन काल में श्वेत नामक राजा राज किया करते थे वृद्ध होने के कारण उन्होंने अपना सारा राज-पाठ अपने पुत्रो को सौंप दिया और खुद संन्यास लेकर भगवान शिव की भक्ति में लीन हो गए। कुछ समय बाद उनकी मृत्यु का समय आया यमराज जी की आज्ञा से यमदूत मुनि श्वेत के प्राण लेने आए लेकिन उस समय श्वेत मुनि भगवान शिव की भक्ति में इस तरह लीन थे की वे अपने प्राण त्यागना नहीं चाहते थे। 

यमदूत अपने बल का प्रयोग करके श्वेत मुनि को लेजाना चाहते थे। तब भगवान शिव ने मुनि श्वेत की रक्षा के लिए अपने गण भैरव को भेजा भगवान भैरव ने अपने डंडे से प्रहार कर सभी यमदुतो को भगा दिया। जब यह बात यमराज जी को पता चली तो वहे क्रोधित होकर भैंसे पर बैठकर यमदंड हाथ में लेकर वहां पहुंचे। जैसे ही वहे श्वेत मुनि के पास पहुंचे वह पर भगवान कार्तिकेय श्वेत मुनि की रक्षा के लिए मौजूद थे। यमराज और कार्तिकेय जी के बीच में भीषण युद्ध हुआ। जिसके चलते भगवान कार्तिकेय ने शक्ति अस्त्र से यमराज जी का वध कर दिया।


यमराज जी को श्राप के कारण लेना पड़ा धरती लोक में जन्म

एक समय की बात है मांडव्य नाम के एक बड़े विद्वान ऋषि हुआ करते थे। एक बार वहे अपनी तपस्या में लीन थे की तभी कुछ चोर आये और उन्हें तपस्या में लीन देखकर उनकी कुटिया में आकर छिप गए। जब तक ये बाद ऋषि मांडव्य पूरी तरह समझ पाते की राजा के सिपाहियों ने उन्हें चोरो को शरण देने के अपराध में गिरफ्तार कर लिया। चोरो की मदद करने के अपराध में सिपाहियो ने ऋषि मांडव्य को भाले से बींधकर मार दिया। 

जब मांडव्य ऋषि की आत्मा यमलोक पहुंची तो उन्होंने यमराज से अपनी मृत्यु का कारण उन्होंने अपने पूरे जीवन में किसी जीव जन्तु पर अत्याचार नहीं किये फिर उन्हें यह मृत्युदंड क्यों मिला। जिससे यमराज ने उन्हें समझाया की वे अपने बाल्यकाल में कीट पतंगों को सींख से बींधा करते थे उसी कर्म के कारण आपको यह सजा मिली है। 

तब ऋषि ने यमराज से कहा की बाल्यकाल के कर्म का दंड देना पाप है क्यूंकि बाल्यकाल में बालक को धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता वह निश्छल संभव का होता है। यह कहकर ऋषि मांडव्य ने क्रोधित होकर यमराज जी को श्राप दे दिया की मनुष्य योनी में जन्म लेकर आदर्श शासक के सभी गुणों से परिपूर्ण होने के बावजूद कभी राजा बनना नसीब नहीं होगा। इस श्राप के कारण यमराज जी को महाभारत काल में महात्मा विदुर के रूप में जन्म लेना पड़ा।


यमराज जी के प्रसिद्ध मंदिर

  • यमराज मंदिर, चंबा हिमाचल
  • श्री यमुना धर्मराज मंदिर, मथुरा 
  • धर्मराज मंदिर, ऋषिकेश 
  • श्री ऐमा धर्मराज मंदिर, तंजावूर तमिलनाडु  


यमराज जी से संबंधित त्यौहार

धनतेरस के बाद और दीपावली से पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दीपावली मनाई जाती है जिसे नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी व रूप चतुर्दशी कहते हैं। नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा व व्रत का विधान है।