भगवान विष्णु जो त्रिदेवो में से एक होने के कारण इस सृष्टि के पालन हार है वो समय-समय पर अधर्म के नाश के लिए धरती पर अवतार लेते रहते है।


भगवान विष्णु (नारायण) कहा निवास करते है?

भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ अपने निवास क्षीरसागर में शेषनाग में विराजमान रहते है क्षीरसागर कैलाश के पास स्थित है जिसको हम लोग मानसरोवर के नाम से भी जानते है। साथ ही साथ भगवान वैकुण्ठ धाम में भी निवास करते है वैकुण्ठ लोक की स्तिथि तीन जगह बताई गयी है।

धरती पर, समुद्र में और स्वर्ग के ऊपर। वैकुण्ठ को विष्णु लोक और वैकुण्ठ सागर भी कहा जाता है। पुराणों में वैकुण्ठ को धरती से बहार ब्रह्मांड से भी बहार तीनो लोको के ऊपर बताया गया है। इसकी देख-रेख के लिए भगवान के 96 छियानवे करोड़ पार्सद तैनात है। हमारी परकृति से मुक्त होने वाली हर जीव आत्मा व्ही रहती है।

वह से वो जीव आत्मा फिर कभी भी वापस नहीं होती। यह श्री हरी विष्णु अपनी चार पट्ट रानियों श्री देवी, भू देवी, नीला और महा लक्ष्मी के साथ निवास करते है। हिन्दू धर्म के अनुसार श्री हरी के धाम को वैकुण्ठ धाम कहा जाता है।


भगवान विष्णु (नारायण) की सवारी 

गरुड़ भगवान विष्णु का वाहन माना जाता है नारायण हमेशा इस विशाल पक्षी पर बैठ कर यात्रा करते है गरुड़ देव को विनायक, गरुत्मत, तऱक्ष्य, वैनते, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपरन आदि नामो से भी जाना जाता है।गरुड़ हिन्दू धर्म के साथ-साथ बोध धर्म में भी महत्पूर्ण पक्षी माना गया है। 

गरुड़ के नाम से हिन्दू धर्म में एक पुराण, ध्वज(झंडा), घंटी और वर्त भी है। ज्यादातर लोग अपने घर में या मंदिर के ऊपर गरुड़ ध्वज लगाते है मंदिर की घंटी के ऊपर भी गरुड़ देव विराजमान रहते है। गरुड़ पुराण में मृत्यु के पहले और मृत्यु के बाद के बारे में बताया गया है। गरुड़ पक्षी हिन्दू धर्म का धार्मिक और अमेरिका का राष्ट्रीय पक्षी भी है। 

गरुड़ का जन्म सतयुग में हुआ था। दक्ष्य प्रजापति की कन्या विनता का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ था उनके दो पुत्र हुए एक अरुण और दूसरे गरुड़। अरुण तो सूर्य देव के रथ के सार्थी बन गए और गरुड़ ने भगवान विष्णु का वाहन बनना स्वीकार किया। रामायण काल में सम्पति और जटायु अरुण के ही पुत्र थे। 


भगवान विष्णु के 3 रूप और उनके कार्य -


Who is Lord Vishnu?


1. करणोधक शयी विष्णु   

इसे नारायण और महा विष्णु भी कहा जाता है। ये विष्णु जी का अहम रूप है और वो अपने लोक में अकेले विराजमान है ये विष्णु जी का सबसे महत्पूर्ण रूप है क्युकी इस रूप में विष्णु जी के शरीर के रोम-रोम से एक ब्रह्मांड (सृष्टि) निकलता है। 

ग्रंथो के अनुसार माना जाता है की नारायण एक विशाल सागर में आराम कर रहे है और उस सागर में अनेको ब्रह्मांड तेहेर रहे है और उनकी हर सांस जब भी वह छोड़ते है तो उसमे से एक नया ब्रह्मांड उतपन्न होता है। 


2. गार्बोधक शयी विष्णु    

करणोधक शयी विष्णु जी से उतपन्न हुए हर एक-एक ब्रह्मांड में विष्णु जी का दूसरा रूप गार्बोधक शयी विष्णु अपने-अपने ब्रह्मांड में मौजूद है। हर एक ब्रह्मांड के सबसे निचे है गार्बोधक महा सागर जिसपे विष्णु जी विराजमान है। इसलिए इनको गार्बोधक शयी विष्णु कहा गया है। नारायण के इसी रूप की नाभि से ब्रह्मा जी उतपन्न हुए है।


3. क्षीरोधक शयी विष्णु  

इस रूप में विष्णु जी अपनी धर्म पत्नी माता लक्ष्मी जी के साथ सिर सागर में रहते है समय-समय पर जब भी नारायण पाप के नाश के लिए अवतार लेते है वो इसी रूप वाले विष्णु जी का होता है। क्षीरोधक शयी विष्णु भी गार्बोधक शयी विष्णु की तरह अपने-अपने ब्रह्मांड में मौजूद है। इस रूप में भी भगवान हर जीव के मन में मौजूद है कण-कण में भगवान बस्ते है। 

             

भगवान विष्णु (नारायण) के अवतार  


ग्रंथो के अनुसार विष्णु/नारायण के 24 अवतार बताये गए है जिसमे से 10 ने सृष्टि कल्याण के लिए अहम भूमिका निभाई है, इनके नाम इस प्रकार से है -

  1. श्री सनकादि मुनि अवतार 
  2. वराह अवतार
  3. नारद अवतार 
  4. नर-नारायण अवतार 
  5. कपिलमुनि अवतार 
  6. दत्तात्रे अवतार 
  7. यज्ञ अवतार 
  8. ऋशभदेव अवतार 
  9. आदिराज पृथु अवतार 
  10. मत्स्य अवतार 
  11. कुर्मा अवतार 
  12. धन्वंतरि अवतार  
  13. मोहिनी अवतार  
  14. नरसिंघ अवतार   
  15. वामन अवतार  
  16. हयग्रीव अवतार  
  17. श्रीहरि अवतार  
  18. परशुराम अवतार  
  19. महर्षि वेदव्यास अवतार  
  20. हंस अवतार  
  21. श्री राम अवतार  
  22. श्री कृष्णा अवतार  
  23. बुद्ध अवतार  
  24. कल्कि अवतार