माता सती भगवान शिव की पत्नी और दक्ष प्रजापति की पुत्री थी जो ब्रह्मा जी के वंसज थे माता सती ने अपनी इच्छा से भगवान शिव से विवाह किया था राजा दक्ष ने एक महान यज्ञ किया जिसका कारण भगवान शिव का अपमान करना था। 

जिसमे उन्होंने भगवान शिव को छोड़ कर सभी देवी-देवताओ अथवा ऋषि मुनियो को आमंत्रित किया था माता सती ने नारद मुनि से अपने पिता के यज्ञ के बारे में सुना तो उन्होंने भगवान शिव से यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी शिव जी ने आमंत्रण न मिलने के कारण मना कर दिया। 

फिर माता ने भगवान शिव से यज्ञ में जाने की ज़िद करी पर भगवान ने उन्हें यज्ञ में न जाने की सलाह दी बार-बार पूछे जाने पर मना करने के कारण माता सती क्रोधित हो गयी उन्हें लगा भगवान शिव उनके साथ एक अज्ञानी महिला की तरह बर्ताव कर रहे है। 

भगवान शिव को अपना वास्तविक रूप दिखाने के लिए उन्होंने अपना दिव्या रूप धारण किया जिसको हम आदिशक्ति के रूप में जानते है। 

ये रूप धारण करते ही सभी लोको में खलबली मच गयी पूरी सृस्टि कापने लगी ये देख भगवान शिव सन्न रहे गए और वह से उठ कर जाने लगे। पर वो जिस भी दिशा में जाते माता का एक दिव्य रूप उनका रास्ता रोक लेता, माता दशो दिशाओ में अपना अलग-अलग रूप में दशो दिशाओ की रक्षा कर रही थी और भगवान शिव उन दिशाओ को लागने में असफल हो गए थे, क्योंकि माता ने वो मार्ग अपने अवतार से रोक लिया था। 

माता आदिशक्ति को इन्ही 10 दिशाओ के रक्षक/10 महा-विद्याओ के रूप में जाना जाता है। प्र्तेक रूप का अपना नाम, कार्य, कहानी और गुण होते है। 10 महा-विधाएँ बुद्धि मता की देविया है इनको महा-काली का रूप भी माना जाता है। 


Ten Mahavidhya Sadhana


10 महाविद्या के नाम और उनके कार्य 


(1) काली 

सबसे पहले माता सती ने महाकाली का रूप धारण किया था उनका रूप बड़ा भयानक था, उनका रंग काला और बाल खुले कपालो की माला धारण करे हुए उनकी हुंकार से दशो दिशाए गुर्जा ने लगी। 

माँ काली के उल्लेख के बारे में चंडी पाठ में बताया गया है, इन्होने ही चण्ड और मुंड का वध किया था और रक्त बीज का रक्त पिया था, इनको कौशकी के नाम से भी जाना जाता है, शुम्भ और निसुम्भ का वध करने वाली महा-काली समय से परे है और अँधेरे को दूर कर हमको ज्ञान की रौशनी से भर देती है।  

(2) तारा  

माता तारा इन 10 महा-विद्या में दूसरे स्थान में आती है इनका रंग नीला है और इनकी जीभ बहार को है जो भये उतपन्न करती है, और वो एक बाघ की खाल पहने हुए है इनकी 3 आँखे है। माता का यह रूप मोक्ष प्राप्त करने वाला और अपने भक्तो को सारी समस्याओ से मुक्ति प्रदान करने वाला है। 

माता का सम्बन्ध मुक्ति से है फिर चाहे वो जीवन मरण चक्र से हो या किसी भी समस्याओ से। माता तारा तांत्रिको की प्रमुख देवी के रूप में भी जानी जाती है, इनकी सबसे पहले महा-ऋषि वसिष्ठ ने आराधना की थी देवी अपने सवरूप में अस्ट तारा समूह का निर्माण करती है।

(3) त्रिपुर सुंदरी 

10 महा-विद्याओ में माँ त्रिपुर सुंदरी देवी का तीसरा रूप है जिन्हे सोडसी भी कहा गया है। माता की 4 भुजाये और 3 आँखे है, इनको ललिता, षोडशी और त्रिपुए सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। माता को षोडशी उनकी 16 कलाओ से सम्पूर्ण होने की वजह से भी कहा जाता है, संसार के विस्तार का सारा कार्य इनमे ही समाहित है।  
 

(4) भुवनेश्वरी 

माता भुवनेश्वरी को आदि-शक्ति और मूल प्रकृति भी कहा गया है, वे माँ राजराजेस्वारी के नाम से भी जानी जाती है। पुत्र प्राप्ति के लिए भी लोग इनकी आराधना करते है, माता भुवनेश्वरी भक्तो को अभय और सीधी प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है। 

इस महा-विद्या की आराधना करने से सूर्य की तरह तेज़ और ऊर्जा प्राप्त होने लगती है, माता का आशीर्वाद मिलने से धंन प्राप्त होता है, इनकी साधना के लिए कालरात्रि, ग्रहण, होली, दीपावली, महा-शिवरात्रि, कृष्णा पक्ष की अस्टमी, चतुर्दशी को शुभ समय माना जाता है।  

(5) छिन्नमस्ता 

माता को प्रचण्ड चंडिका के नाम से भी जाना जाना जाता है, माता के हाथ में अपना ही कटा सर है और दूसरे हाथ में कतार है। उनकी कटी हुई गर्दन से रक्त की 3 धार निकलती है उनमे से एक को वह खुद पीती है और अन्य 2 धार वो अपनी वर्णानि और शाकनी नाम की 2 सेविकाओं को तृप्त कर रही है। 

ये साधना योग्य तांत्रिको और सब कुछ त्याग चुके मनुष्यो तक ही सीमित है, आम लोगो के लिए ये साधना खतरनाक मानी जाती है, हलाकि दुश्मनो का नाश करने के लिए इनकी साधना की जाती है। 

शांत भाव से इनकी उपासना करने पर ये अपने शांत स्वरुप को प्रकट करती है, उग्र रूप में उपासना करने पर ये उग्र रूप में दर्शन देती है, जिससे सादक के नष्ट होने का डर रहता है। 

(6) त्रिपुर भैरवी 

माता त्रिपुर भैरवी की उपासना करने पर समस्त बंधन से मुक्त हो जाते है, माता भैरवी के निम्न भेद बताये गए है। त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कोलेश्वर भैरवी, नित्य भैरवी, रूद्र भैरवी, भद्रा, सतकुट्टे भैरवी आदि। माता की 4 भुजाये और 3 नेत्र है, ये सादक को युक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करती है। 


(7) धूमावती 

माँ धूमावती 10 महा-विधाओं का सातवा स्रोत है, विशेस्ताओ और प्रकृति में इनकी तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी जेष्टा, देवी निरति के साथ की जाती है। ये तीनो देविया नकारात्मक गुणों का अवतार है, लेकिन साथ ही साथ साल के एक विशेष दिन उनकी पूजा भी की जाती है। इनकी साधना अधिक गरीबी को दूर करने के लिए की जाती है शरीर को सभी प्रकार के रोग मुक्त करने के लिए भी उनकी पूजा की जाती है।

(8) बगलामुखी 

माता बगलामुखी की साधना युद्ध में विजय होने और सत्रुओ के नाश के लिए की जाती है। कृष्णा और अर्जुन ने महाभारत के युद्ध से पहले माता बगलामुखी की पूजा की थी, इनकी साधना सत्रु भये से मुक्त और वाक् सीधी के लिए की जाती है। माता को पीला रंग बहुत पसंद है इसलिए इनको पीतांबरा भी कहा जाता है।   

(9) मातंगी 

देवी मातंगी को वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप माना जाता है और श्री कुल के अंतर्गत पूजी जाती है। वाणी, संगीत, ज्ञान, विज्ञानं, समोहन, वशीकरण, मोहन की देवी मानी जाती है, इंद्र जाल विद्या, जादुई शक्ति और तंत्र विद्या में देवी पूर्ण है। ग्रंथो के अनुसार मातंग भगवान शिव का ही एक नाम है। 

(10) कमला 

माता कमला 10 महा-विद्याओ में दशवी विद्या है, इनको लक्ष्मी भी कहा जाता है। माता के अनेक भेद है ये संसार की सभी सम्पदा धन सम्पति, वैभव को प्रदान करने वाली है। देवी भगवत में इनको भुगनेस्वरी और इंद्र ने यज्ञ विद्या, महा-विद्या और गुहे विद्या कहा है। 

दरिद्रता, संकट, गहरे कलेश और अशांति से मुख्ती के लिए माँ कमला की पूजा अर्चना की जाती है। सम्रिधि, धन, नारी और पुत्र प्राप्ति के लिए भी इनकी साधना की जाती है, जिस पर माँ अपनी दृस्टि डाल देती है वो मनुष्य कुबेर के समान धनि हो जाता है।