पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रिदेवों में सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन है यहाँ बात जानने के लिए महर्षि भृगु ने ली त्रिदेवो की परीक्षा। लेकिन क्या आप महर्षि भृगु के बारे में जानते है की व्हे कौन है उनका त्रिदेवो की परीक्षा लेने के पीछे क्या उद्देश्य था। इस लेख के माध्यम से सारी जानकारी आपको बताते है।
महर्षि भृगु कौन थे
क्यों लेनी पड़ी महर्षि भृगु को त्रिदेवों की परीक्षा
मान्यता के अनुसार कहा जाता है की एक बार सरस्वती नदी के किनारे कई महान ऋषि-मुनि आपस में चर्चा कर रहे थे की त्रिदेवो में सबसे श्रेष्ठ कौन है? सबने अपने-अपने विचार साझा किये परन्तु कोई निष्कर्ष नहीं आया फिर उन सब ऋषियों ने आपसी सहमति से ये निर्णय लिया की त्रिदेवो की परीक्षा ली जाएगी और तब फैसला होगा। त्रिदेव की परीक्षा के लिए सबने महर्षि भृगु से प्राथना कर उनको यहाँ कार्य दिया।
महर्षि भृगु सबसे पहले अपने पिता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और वह जाते ही उन्होंने ब्रह्मा जी को ना प्रणाम किया ना उनकी स्तुति की यहाँ देख ब्रह्मा जी को क्रोध आ गया पर महर्षि भृगु उनके पुत्र है यहाँ सोच कर उन्होंने अपना क्रोध शांत कर दिया।
फिर महर्षि भृगु वह से कैलाश पहुंचे जैसी ही भगवान शिव ने उन्हें देखा वह ख़ुशी से अपने आसन से उठे और महर्षि के आदर करने लगे परन्तु महर्षि ने उनका आदर ठुकरा दिया और बोले हे, महादेव आप हमेशा धर्म, वेदो का उल्ल्घन करते है और दुष्टो को भी वरदान दे कर सृष्टि को खतरे में डाल देते है इसलिए में आपका आदर कदापि स्वीकार नहीं करूंगा।
यह बात सुन भगवान शिव को क्रोध आ गया और वो अपने त्रिशूल से महर्षि पर प्रहार करने ही वाले थे परन्तु वह भगवती आ गयी और उनसे महर्षि को छमा करने की प्राथना करने लगी। भगवान शिव ने भी अपना क्रोध शांत किया और महर्षि को छमा किया।
अंत में महर्षि वैकुण्ठ गए वह पर भगवान विष्णु अपने शेषनाग के आसान पर आराम कर रहे थे। महर्षि वह पहुंचे और भगवान विष्णु की छाती पर लात मार दी। एकदम से भगवान विष्णु अपने आसान से उठे और महर्षि से छमा मांगते हुए बोले हे, महर्षि मुझे छमा कर दीजिये मुझे नहीं पता था की आप यहाँ आने वाले है वरना में आपके स्वागत के लिए जरूर उपस्थित होता।
मुझे मार कर आपके पांव में चोट तो नहीं लगी यहाँ कहकर भगवान महर्षि के चरण सहलाने लगे और अपने आसान पर बैठा कर उनकी सेवा करने लगे। भगवान विष्णु का यहाँ प्रेम-व्यवहार देख महर्षि भृगु के आशु बहने लगे और वो वह से चले गए।
महर्षि भृगु ऋषि-मुनियो के पास लौटे और उनको सारी बात बताई यहाँ सब सुन कर सभी ऋषि बड़े हैरान हुए और भगवान नारायण को ही श्रेष्ट मान कर उनकी पूजा अर्चना करने लगे।