नमस्कार दोस्तों, आज के लेख के माध्यम से हम आपको उस जगह के बारे में बताएंगे जहा खुद महादेव ने अपने अंश वीरभद्र को भेज के अपने ससुर का सिर काटा था। 

जी हाँ, हरिद्वार से लगभग 4 की. मी दूर है कनखल जहा पर आज भी मौजूद है ये जगह जिसको दक्षेस्वर महादेव मंदिर के नाम से पूरे भारत में जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना और इससे जुडी बातें चलिए जानते है इस पौराणिक जगह के बारे में -


दक्षेस्वर महादेव मंदिर


दक्षेस्वर महादेव मंदिर पौराणिक कथा 

मान्यताओं के अनुसार राजा दक्ष भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती के पिता और ब्रह्मा के पुत्र थे। माता सती ने अपने पिता के विरुद्ध जाकर महादेव से विवाह किया था जो राजा दक्ष को पसंद नहीं था। 

एक बार उन्होंने एक विशाल हवन का आयोजन करवाया जिसके चलते वह सभी देवी-देवताओ और ऋषि मुनियो को आमंत्रित किया गया लेकिन कैलाश में किसी को आमंत्रण नहीं भेजा। लेकिन माता सती अपने पिता के इस व्यवहार को नज़रअंदाज़ कर उस यज्ञ में बिना महादेव की अनुमति के चली गयी। 

अपनी पुत्री को वह देख दक्ष प्रजापति ने उनका और महादेव का बहुत अपमान किया यह देख माता सती ने उसी हवन कुण्ड की अग्नि में कूद कर अपने प्राणो की आहुति दे दी। जैसे ही यह बात भगवान शिव को पता चली उन्होंने अपनी जटाओ से कुछ बाल तोड़ कर अपने अंश वीरभद्र को उतपन किया और उसको दक्ष प्रजापति का अहंकार रुपी सर काट उसका वध करने को कहा। 

वीरभद्र ने ऐसा ही किया। उसके बाद देवताओ और राजा दक्ष के परिजनों के भोलेनाथ से अनुरोध पर भोलेनाथ ने दक्ष को जीवन दान दिया और उसपर बकरे का सिर लगा दिया। राजा दक्ष को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने महादेव से अपनी गलती की छमा मांगी। 

तब महादेव ने ये ऐलान किया की वह हर साल सावन के महीने में कनखल आएँगे। इसी वजह से सावन में श्रद्धालु यह भारी संख्या में आते है। 


दक्षेस्वर महादेव मंदिर मान्यता 

ऐसा माना जाता है की कैलाश, काशीनाथ के बाद अगर भगवान शिव कही विराजते है तो वह यह जगह है। दुनिया के हर शिव मंदिर में भगवान की शिवलिंग के रूप में पूजा होती है बस यही एक मंदिर है जहा शिव के साथ दक्ष प्रजापति के कटे सिर की भी पूजा होती है। 

माना जाता है की भगवान शिव यह साक्षात् रूप में विराजते है, सावन के दिन यह जलाभिषेक करने से भगवान भोलेनाथ अपने भक्तो की सभी मनोकामनाए पूर्ण करते है। यहाँ मंदिर गंगा किनारे बसा है जो दक्षा घाट के नाम से भी जाना जाता है। महादेव भक्त यही पे स्नान करने के बाद महादेव के दर्शन करते है। 

इस मंदिर में पाँव के चिन्ह भी बने हुए है कुछ लोग इसको महादेव तो कुछ इसको नारायण के पाँव के चिन्ह मानते है। इस मंदिर में एक गड्डा भी है मान्यता है की ये व्ही गड्डा है जहा माता ने कूद कर अपने प्राणो की आहुति दी थी। 


दक्षेस्वर महादेव मंदिर का निर्माण 

इसके निर्माण के बारे में बताया जाता है की यह मंदिर रानी धनकौर ने 1810 A D में बनवाया था। दुबारा इसका पुननिर्माण 1962 में करवाया गया था।